Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 08
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 12 // // 13 // // 14 // // 15 // // 16 // // 17 // गंठि त्ति सुदुब्भेओ, कक्खडघणरूढगूढ गंठि व्व / जीवस्स कम्मजणिओ, घणरागद्दोसपरिणामो काऊण गंठिभेयं, सम्मत्तं पावएऽनियट्टीए / पलियपुहत्ते कम्माण-मुवगए देसविरयाई धम्मं अलद्धपुव्वं, दंसणजुत्तं सुदुल्हं लहिउं। राया उदायणो इव, विसुद्धबुद्धीए धारिज्जा सम्मत्तमहारयणे, भवदुहदालिद्दविद्दवे पत्ते / नारयतिरियगईणं, दुन्नि निरुद्धाई दाराई / सुरनरसिद्धिसुहाई, साहीणाई जियस्स निच्चं पि। सम्मद्दिट्ठिस्स अबंधियाउओ नरयतिरिएसु जह कामदेवसड्ढो, सिरिवीरजिणाउ लद्धवरधम्मं / भुत्तूण सुरसुहाई, महाविदेहम्मि सिज्झिहिइ पढमकसाया चउरो, जावज्जीवाणुगामिणो हेऊ / नरयस्स तेसिमुदए सम्मं मुंचंति भव्वा वि बियतइयकसायाणं वच्छरचउमास गामिणामुदये। तिरिनरगइहेऊणं, विरइं च वमंति दुविहं पि संजलणाणं पच्चक्खाणुगामिणं देवगइनिमित्ताणं / उदए वयाइयारो, ते सम्माइं न हणंति जह पढमकसाएहिं, चुयसम्मत्ताइधम्मपरिणामो / नंदमणियारसिट्ठी, अइरा तिरियत्तणं पत्तो पञ्चविहायाररया, छज्जीवनिकायरक्खणुज्जुत्ता / पंचसमिया तिगुत्ता, गुणवंत गुरु मुणेयव्वा तेसिं पासम्मि विसुद्ध-धम्मपरिणामसुद्धबुद्धीएं। धम्मो सम्मत्ताई, विहिणा गिहिणा गहेयव्वो // 18 // // 19 // // 20 // // 21 // // 22 // // 23 // 284
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