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શ્રી શાન્તિનાચરિત્ર–ચિત્રપટ્ટિકા
પાદનોંધો.
१. वाचस्पति गैरोला, " भारतीय चित्रकला - पृ. १३५ ” इलाहाबाद, - १९६३
"
:
२. अ. भाअन्त थी. शाद, " श्री अगरबन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रन्थ इतिहास और पुरातत्त्व खंड- पृ. ७-१० ११
3. साराभाई] नवाय,
४. कार्ल खण्डालवाला,
नत्र
"
जैन कला एवं स्थापत्य १, पृ. ४१९ " भारतीय ज्ञानपीठ
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૨૯
५. डा. यु. थी. शाद, " श्री अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रन्थ : इतिहास और पुरातत्त्व खंड, पृ. ७-१० "
६. मेन.
७. भेजन
4. J. P. Losty, Oriental Art Magazine, vol. XXIII, No. 2, Summer 1977"
૯. જૈન હસ્તપ્રતિઓના તથા લિપિશાસ્ત્રના અનુભવી અભ્યાસી શ્રી લક્ષ્મણભાઈ હી. ભાજક ( અમદાવાદ ) આ સંખ્યાની પ્રતિબા જાયેલી છે.
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१०. राय कृष्णदासने इस शैलीके चित्रोंको 'अपभ्रंश शैली' के नामसे कहना अधिक उपयुक्त समझा है । इस संबंध में उनका कथन है, कि " जब इन चित्रोंका आलेखन कोई नया उत्थान नहीं हैं; प्राचीन शैलीकी विकृतिमात्र है, तो 'अपभ्रंश' ही एक ऐसा शब्द है, जिसके द्वारा उन विकृतियोंकी समुचित अभिषा एवं व्यंजना हो सकती है । इस प्रकार उन विकृतियोंके समवायरूपी जिस निजत्वसे यह आलेखन बना है, उसके अर्थ ही यहाँ 'शैली'को लेना चाहिए " वाचस्पतिगैरोला, "भारतीय चित्रकला पृ. १३५०
११. खेल्न, पृ. १३७.
१२.
पृ. १३४.
१३.
पू. १३२.
”
१४. वाचस्पति गैरोला, " भारतीय संस्कृति और कला, पृ. २६२ ", बनारस १५. (1) साशभाई नवाज जैन चित्रपदुम-पृ. ३१ महावाड. (2) रविश १२ शवण, "जैन चित्रम्यदुभ - पृ. ८ " अभावाई. (3) वाचस्पतिर्गरोला, "भारतीय चित्र कला-पृ. १३५० इलाहाबाद.
१९. वाचस्पतिमेरोला, "भारतीय चित्रकला. १४२ इलाहाबाद.
१७. नवाण, "न त्रिभ५. ३८-४२ तथा ५२-५८ ११
१८. मुनिश्री पुरुष तथा ..भी. शा (6 Journal of the Indian society of
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