Book Title: Shantinath Charitra Chitra Pattika
Author(s): Sheelchandravijay
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 104
________________ શાન્તિનાથચરિત્ર-ચિત્રપદ્રિકા १. गुजराती शैलीके चित्रोंने, शताब्दोयों पूर्व से अजन्ता, बाघ और एलोरा के भित्तिचित्रोंकी परम्पराको लघुचित्रोंके रूपमें ताडपत्रीय पोथियों पर सुरक्षित रखा।" (मेशन, पृ. १३५) x" इस पटलीको उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इस पर एक श्रावक की दो पत्नीयोंको चित्रित किया गया है। इन दोनों महिलाओं के चित्रों में बाघ-प्रजंटा के नारी चित्रों के आकार और मुखाकृति के चित्रणकी विशिष्ट परंपरा का निर्वाह हआ है। यद्यपि इनके चित्रणमें शैलीगतता भौर रीतिबद्धता हो सकती है। लेकिन चित्रों में अजंता और बाघको चित्रण परंपराके निर्वाह किये जानेकी यह अंतिम झलक हैं, कयों कि इन चित्रोंके बाद आगे के चित्रोंमें यह सलक पुनः नहीं देखी गई। इस पटलीमें अंकित दाढीवाले श्रावकका चित्र एलोरा के कैलास मंदिर के कुछ भित्तिचित्रोंमें चित्रित ऐसी ही वाढीवाले व्यक्तियों के चित्रोंसे बहुत कुछ मिलता जुलता है।" ." लम्बी लम्बी, कानों तक विस्तृत आंखोंके चित्रांकनकी परंपरा, जो जिनदत्तसरि को पटलीमें देखी गयी है, वह प्रथमबार अजंता की गुफा-२ के भित्तिचित्रोंमें पायी गयी है।.......अजंता-शैलीके चित्रणकी परंपरा इन प्रारंभिक पटलियोंमें मात्र नारी-आकति-- चित्रणमें ही नहीं है, इस कालकी ऐसी अनेक पटलियाँ है जिन पर लता-बल्लरियों के प्रलंकरण हैं।....इस पटलियों के अलंकरण चित्रणमें हम पुनः एक बार इस बातके साक्ष्य पाते हैं कि गुजरात और राजस्थानमें, जहाँ ये पटलियाँ चित्रित हुई, अजंताके अलंकारिक आशयोंके चित्रणकी परंपरा प्रचलित थी।" " स्मरण रहे कि जिनदत्तसूरि की पटलियों में नारी आकृतियोंका मंकन अजंता को प्रचलित कला परंपरामें हुआ है जो आगे चलकर समाप्तप्राय हो गई।" [जैन कला एवं स्थापत्य (भारतीय ज्ञानपीठ ) खंड--३. पृ. ४०४.-५-६, ४१० काल खण्डालावाला ] x (આ પાટલી તે શ્રી જિનદત્તસૂરિની પ્રસિદ્ધ પાટલી, જેનાં ચિત્રો ડે. મેતીચન્દ્રના “જૈન મિનિએચર १४-1ोम वेस्टन न्डिया' भi Fig. 190-191-192 तरी प्रसिद्ध ७.) * જિનદત્તસૂરિ અને વાદી દેવસૂરિ–આ અને આચાર્યોની જીવનઘટનાઓને આલેખતી બે પાટલીઓની સરખામણી કરતાં ડે, મેતીચન્દ્ર નેપ્યું છે કે : "In the former there are greater vestiges, of the art of Ajanta and Ellora, whlie in the latter, we see western Indian in its full-fledged state." (Jain miniature Painting from Western India, Page-62) www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only Jain Education International

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