Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 39 Anuyogdwar Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
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आगम
(४५)
प्रत
सूत्रांक
[१४८]
दीप
अनुक्रम
[३१०]
अनुयो०
मलधारीया
॥ २२६ ॥
[भाग-३९] “अनुयोगद्वार " - चूलिकासूत्र - २ ( मूलं+वृत्तिः) मूलं [१४८] / गाथा ||११८...||
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से किं तं पएसदितेनं १, २ णेगमो भणइ छण्हं पएसो, तंजहा- धम्मपएसो अधम्म एसो आगासपएसो जीवपएसो खंधपएसो देसपएसो, एवं वयंतं णेगमं संगहो भाइ-जं भणसि छहं पएसो तं न भवइ, कम्हा ?, जम्हा जो देसपएसो सो तसेव दव्वस्स, जहा को दिट्टंतो?, दासेण मे खरो कीओ दासोऽवि में खरोऽवि मे, तं मा भणाहि-छहं पएसो, भणाहि पंचण्हं पएसो, तंजहा-धम्मपएसो अधम्मप एसो आगासपएसो जीवपएसो खंधपएसो, एवं वयंतं संगहं ववहारो भणइ-जं भ
सि - पंचण्हं पएसो, तं न भवइ, कम्हा ?, जइ जहा पंचण्हं गोट्टिआणं पुरिसाणं केइ दबजाए सामपणे भवइ, तंजहा-हिरपणे वा सुवण्णे वा धणे वा धपणे वा, ते जुन्तं वसुं तहा पंच परसो, तं मा भणिहि-पंचण्हं पएसो, भणाहि-पंचविहो परसो, तंजा - धम्मपएसो अधम्मपएसो आगासपएसो जीवपएसो खंधपएसो, एवं वयंतं ववहारं उज्जुसुओ भणइ-जं भणसि-पंचविहो पएसो, तं न भवइ, कम्हा?, जइ ते
वृत्तिः •
~463~
उपक्रमे प्रमाणद्वार
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पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ... आगमसूत्र -[४५] चूलिकासूत्र [२] अनुयोगद्वार मूलं एवं हेमचन्द्रसूरि - रचिता वृत्तिः
॥ २२६ ॥

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