Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 39 Anuyogdwar Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
View full book text
________________
आगम
(४५)
प्रत
सूत्रांक
[१५४ ]
गाथा:
II--II
दीप
अनुक्रम [ ३२५
-३३६]
[भाग-३९] “अनुयोगद्वार " - चूलिकासूत्र - २ ( मूलं + वृत्ति:)
मूलं [१५४] / गाथा || १२५-१३२||
व्वभूएसु, तसेसु थावरेसु अ । तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासिअं ॥ २ ॥ जह मम ण पिअं दुक्खं जाणिअ एमेव सव्वजीवाणं । न हणइ न हणावेइ अ सममणइ तेण सो समणो ॥ ३ ॥ णत्थि य से कोइ वेसो पिओ अ सव्वेसु चैव जीवेसु । एएण होइ समणो एसो अन्नोऽवि पज्जाओ ॥ ४ ॥ उरंगगिरिजलणसागरनहतलतरुंगसमो अ जो होइ । भमरमियधरणिजलरुहरविपवणसमो अ सो समणो ॥ ५ ॥ तो समणो जइ सुमणो भावेण य जइ ण होइ पावमणो । सयणे अ जणे अ समो समो अमाणावमाणे ॥ ६ ॥ से तं नोआगमो भावसामाइए, से तं भावसामाइए, से तं सामाइए, से तं नामनिष्फण्णे ।
इहाध्ययनाक्षीणाद्यपेक्षया सामायिकमिति वैशेषिकं नाम, इदं चोपलक्षणं चतुर्विंशतिस्तवादीनाम्, अस्यापि पूर्वोक्तशब्दार्थस्य सामायिकस्य नामस्थापनाद्रव्य भावभेदाचतुर्विधो निक्षेपः, अत एवाह-'से समा सओ चउब्बिहे' इत्यादि, सूत्रसिद्धमेव, यावत् 'जस्स सामाणिओ अप्पा' इत्यादि, यस्य-सत्त्वस्य सामानिक:
For ane & Personal Use City
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ... आगमसूत्र -[४५] चूलिकासूत्र [२] अनुयोगद्वार मूलं एवं हेमचन्द्रसूरि - रचिता वृत्तिः
~ 522~

Page Navigation
1 ... 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560