Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 39 Anuyogdwar Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

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Page 492
________________ आगम (४५) [भाग-३९] "अनुयोगद्वार”- चूलिकासूत्र-२ (मूलं+वृत्ति:) ....... मूलं [१५०] / गाथा ||११९-१२२|| ........ प्रत सूत्रांक [१५०] गाथा: यन्तानां जीवानामाश्रिताः जघन्यादिभेदभिन्ना असङ्ख्येया मन्तव्याः 'दुण्ह प समाण समय'त्ति द्वयोश्च समयोः-उत्सर्पिण्यवसर्पिणीकालखरूपयोः समयाः असलयेयखरूपाः, एवमेते प्रत्येकमसङ्ख्येयस्वरूपाः दश प्रक्षेपाः पूर्वोक्ते वारत्रयवर्गिते राशी प्रक्षिप्यन्ते, इत्थं च यो राशिः पिण्डितः संपद्यते स पुनरपि पूर्ववद्वारत्रयं वय॑ते, ततश्च एकस्मिन् रूपे पातिते उत्कृष्टासङ्ख्येयासङ्ख्येयकं भवति । उक्तं नवविधमप्यसयेयकं, साम्प्रतं प्रागुद्दिष्टमष्टविधमनन्तकं निरूपयितुमाह जहण्णयं परित्ताणतयं केवइ होइ?, जहण्णय असंखेजासंखेजयमेवाणं रासीणं अण्णमण्णब्भासो पडिपुण्णो जहणणयं परित्ताणतयं होइ, अहवा उक्कोसए असंखेजासंखेजए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं परित्ताणतयं होइ, तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाई ठाणाई जाव उक्कोसयं परित्ताणतयं ण पावइ, उक्कोसयं परित्ताणतयं केवइअं होइ ?, जहणणयपरित्ताणतयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णब्भासो रूखूणो उकोसयं परित्ताणतयं होइ, अहवा जहण्णयं जुत्ताणतयं रूवणं उक्कोसयं परित्ताणतयं होइ, जहण्णय जुत्ताणतयं केवइ होइ?, जहपणयपरित्ताणतयमेत्ताणं रासीणं अपणमण्ण ||--|| दीप अनुक्रम [३११-३१७] अनु.४१ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...आगमसूत्र-[४५] चूलिकासूत्र-[२] अनुयोगद्वार मूलं एवं हेमचन्द्रसूरि-रचिता वृत्ति: अत्र मुद्रणदोषात् सूत्रक्रमांक १४९ स्थाने सूत्रक्रमांक १५०' इति मुद्रितं अथ 'अष्टविध-अनन्तकम्' प्ररुप्यते ~492~

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