Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

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Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 20COM OrcoIH नमोऽर्हन्यः ॥ ॥अथ सार्थ भववैराग्यशतकम् ॥ संसारम्मि असारे, नत्थि सुहं वाहि-वेअणापउरे । जाणंतो इह जीवो, न कुणइ जिणदेसि धम्मं॥१॥ __ अनेक प्रकारनी व्याधिओ अने वेदनाओथी भरपूर एवा आ असार संसारमा आ जीवने कोइ पण गतिमा क्षण मात्र पण सुख नथी. आवी रीते आत्मा संसारने असार जाणे छे छतां पण बहुलकर्मी होवाथी वीतराग भगवंते उपदेशेलो दयामूल धर्म करतो नथी, अने संसारनो लोलुपी-लालचु थइ धर्मरत्न गुमावे छे. ॥१॥ अजं कल्लं परं परारिं, पुरिसा चिंतन्ति अत्थसंपत्तिं । अंजलिगयं व तोयं, गलतमा न पिच्छन्ति ॥२॥ * संसारेऽसारे नास्ति सुखं व्याधि-वेदनाप्रचुरे । जाननिह जीवो न करोति जिनदेशितं धर्मम् ॥ १॥ + अद्य कल्ये परस्मिन् परतरस्मिन् पुरुषाश्चिन्तयन्त्यर्थसम्पत्तिम् । अञलिगत मिव तोयं गलदायुर्न पश्यन्ति ॥ २॥ For Private And Personal Use Only

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