Book Title: Sarasvatikanthabharanam
Author(s): Dhareshvar Bhojdev, Kedarnath Sharma, Vasudev L Shastri
Publisher: Pandurang Jawaji

View full book text
Previous | Next

Page 779
________________ काव्यमाला। वृतिविवरनिर्गतदल एरण्डः साधयतीव तरुणेभ्यः / अत्र गृहे हालिकवधूरेतावन्मात्रस्तनी वसति // ] . पाणिगृहीता ऊढा यथा'बालत्तणदुल्ललिआए अज्ज अणजं क णववहूए / भाआमि घरे एआइणित्ति णितो पई रुद्धो // 38 // ' बालत्वदुर्ललितयाद्य अनार्य कृतं नववध्वा / बिभेमि गृहे एकाकिनीति निर्यन् पती रुद्धः // ] अनूढा कुमारी यथा'कस्स करो बहुपुण्णफलेक्कतरुणो तुहं "विसिम्मिहिइ / थणपरिणाहे मम्महणिहाणकलसो व पारोहो // 385 // ' [कस्स करो बहुपुण्यफलैकतरोस्तव विश्रमिष्यति / स्तनपरिणाहे मन्मथनिधानकलश इव प्ररोहः // ] प्रथमोढा ज्येष्ठा यथा'पण पंढमपिआए रखिउकामो वि मैंहुरमहुरेहिं / छेअवरो विणेंडिजइ अहिणवबहुआविलासेहिं // 386 // " [प्रणयं प्रथमप्रियाया रक्षितुकामोऽपि मधुरमधुरैः / छेकवरः सुखायतेऽभिनववधूकाविलासैः // ] 1. 'बलत्तण' ख. 2. 'आभा (भाआ?) मि' ख. 3. 'एआइणि वि' ख. 4. 'णित्तो' क.ख. 5. 'णिसम्मिहिइ' क.ख., 'णिसिम्मिहिइ' ग.घ., "विसम्मिहर' गाथासप्त०. 6. 'णिहाणकलसोव्व' ग.. 7. 'पारोहे' क.ख.ग.घ., निधानकल. सेव पारोहो' इति गाथासप्त० पाठः. 8. 'उपणअं' क., 'उपण पणअं' ख. 9. 'रक्खिन(उ?) कामो वि महुरेहिं' क. 10. 'मधुरमधुरेहि' ख., 'महुरमहुरेहि' ग.घ. 11. 'च्छेआवरो' ख. 12. 'विणलिज्जई' क.ख. 13. 'अहिणवबहूआ' ख.

Loading...

Page Navigation
1 ... 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894