Book Title: Sarasvatikanthabharanam
Author(s): Dhareshvar Bhojdev, Kedarnath Sharma, Vasudev L Shastri
Publisher: Pandurang Jawaji

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Page 831
________________ 738 * वक्तव्यार्थप्रशंसापरं वचः प्ररोचना; यथा 'जयति भुवनकारणं खयम्भुर्जयति पुरन्दरनन्दनो मुरारिः।। जयति गिरिसुतानिरुद्धदेहो दुरितभयापहरो हरश्च देवः 505 प्रस्तुतवस्तूपपादनावसरसूचकं वचः प्रस्तावना; यथा रत्नावल्याम् / - 'द्वीपादन्यस्मादपि मध्यादपि जलनिधेर्दिशोऽप्यन्तात् / आनीय झटिति घटयति विघिरभिमतमभिमुखीभूतः 506 - उद्धात्यकादीनामङ्गानां प्रवृत्तिः वीथी उद्धात्यकः कथोद्धातः प्रयो। गातिशयः प्रवर्तकोऽवलगितमिति / तत्रोद्धात्यको यथा'को जयति जयति शर्वः केन जितं जितमनङ्गदहनेन / त्रिपुरारिणा भगवता बालशशाङ्काङ्कितजटेन / / 507 // कथोद्धातो यथा'साकं पङ्कजजन्मना सुरपतेरभ्यर्थनाया वशा दिक्ष्वाकोः शरदिन्दुबिम्बविमले वंशेऽवतीर्य खयम् / विशेषात्तपदं त्रयीपथजुषां विद्वेषिणं राक्षसं .... यः पौलस्त्यमहन् स पातु भवतो रामाभिधानो हरिः 508 प्रयोगातिशयो यथा'यूथायितमवतु हरेः क्ष्मामुद्धरतो वराहवपुषो वः / शेषफणरत्नदर्पणसहस्रसंक्रान्तबिम्बस्य // 509 // 1. 'जयीपदजुषां' ख. 2. 'उत्थापितम्' क., 'अत्याहितम्' ख. 3. 'शेषफणारत्नदर्पण' क.ख.

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