Book Title: Sarasvatikanthabharanam
Author(s): Dhareshvar Bhojdev, Kedarnath Sharma, Vasudev L Shastri
Publisher: Pandurang Jawaji

Previous | Next

Page 848
________________ विविधबन्धाः। ROOOOOOOOOOLCOACOCOLOOBOOLOOLOOOOOOOOOLORSPORTS . (12) विविडितचक्रबन्धःशिखरादन्यतमात्रै प्रतिपर्व भ्रमति रेखयाधर्धम् / नेमौ तदितरमधं विविडितचक्राभिधे बन्धे / न सारं 25M निता स्थ श.. मि. चजयी Loodarea coreovererea corecardiorreosovelovelovelovelovelovelovelovercorso casacocheoreoccardo सा सती जयतादत्र सरन्ती यमितात्र सा / सारं परं स च जयी शमिता स्यन्दनेन सा // (द्वि. प. पृ. 281 श्लो. 315) (13) शरयन्त्रबन्ध:चतुर्वपि च पादेषु पतिशो लिखितेष्विह / आदेरादेस्तुरङ्गस्य पादैः पादः समाप्यते // | मस्ते . ज ग | तां | गा papaapaaaaaaaaaaaaaaaaGOOOOOOOOOOOCapapapapaOOPS दान व कुल क्ष | य स | मस्ते | ज स | तां | ना मु | दा | म व नमस्ते जगतां गात्र सदानवकुलक्षय / समस्तेऽजसतां नात्र मुदामवनलक्षय // (द्वि प. पृ. 282 श्लो. 317) acordarearen sorrera pro vvederea con

Loading...

Page Navigation
1 ... 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894