Book Title: Sarasvatikanthabharanam
Author(s): Dhareshvar Bhojdev, Kedarnath Sharma, Vasudev L Shastri
Publisher: Pandurang Jawaji
________________ 5 परिच्छेदः / सरस्वतीकण्ठाभरणम् / 727 य उदासीनेन वर्ण्यते सोऽलंकारप्रधानः स हि रसभावादेः संकरप्रकारमभिधित्सुः खभावोक्तिं वक्रोक्तिं वावलम्बते / तत्र स्वभावोक्तिपक्षे जातिः // सा विधिमुखेन यथा' 'थोओसरंतरोसं थोअत्थोअपरिवड्डमाणपहरिसम्। . होइ अ दूरपआसं उहँअरसाअंतविन्भेमं तीअ मुखम् // 49 // ' [स्तोकापसरद्रोषं स्तोकस्तोकपरिवर्धमानप्रहर्षम् / भवति च दूरप्रकाशमुभयरसायत्तविभ्रमं तस्या मुखम् // ] अत्र सत्यभामाया रोषस्यापसर्पतः प्रहर्षस्य च प्रसर्पतो येऽनुभावा जिह्मावलोकनमुखप्रसादादयस्त इह संकीर्यमाणाः कविनोभयरसायत्तविभ्रममित्यनेन यथावदवस्थिता भवन्तीति विधिमुखेनाभिधीयन्ते / / जातिरेव निषेधमुखेन यथा'धीरेण माणभंगो माणक्खलणेण गरुअ धीरारम्भो / उल्ललइ तुलिजंते एकम्मि वि से थिरं ण लग्गइ हिअअं 1925 धैर्येण मानभङ्गो मानस्खलनेन गुरुकधैर्यारम्भः / उल्ललति तोल्यमाने एकस्मिन्नप्यस्याः स्थिरं न लगति हृदयम् // ] अत्र यद्यपि हेतूपन्यासो वर्तते तथापि तस्य खभावाख्यानपरिकरत्वेनाप्राधान्येन हृदयक्रियाखरूपमेवेह निषेधमुखेनाभिधीयत इतीयं जातिरेव भवति // . 1. 'यत्र' क.ख. 2. 'थोओउसरत' क. 3. 'थोअपरिवट्टमान' क.ख. 4. 'उअह' कःख. 5. 'बिग्मतीअ' ख. 6. 'अपसज्जतः' क. 7. 'उभयरसायत्तमित्यनेन' ख. 8. 'माणकवलणेण सहायं गरुअधीरारम्भो' ख. 9. 'उलला तुलिते' ख, 10. भावाख्यानपरिकरत्वेन' ख. 11. 'स्वरूपमेव हि' क.
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