Book Title: Sarasvatikanthabharanam
Author(s): Dhareshvar Bhojdev, Kedarnath Sharma, Vasudev L Shastri
Publisher: Pandurang Jawaji

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Page 817
________________ - काव्यमाला। त्वम् , विकटबन्धत्वमुदारता, उपक्रमाभेदो रीतिः, अर्थप्राकट्यं प्रसादः, अनिष्ठुरता सौकुमार्यम्, अभीष्टतमता प्रेयः, दीप्तरसत्वं कान्तिरिति गुणा दश, रसास्तु रत्युत्कर्षहर्षधृत्युत्कण्ठावेगविस्मयमतिवितर्कचिन्ताचपलताहासोत्साहस्तम्भगद्गदोन्मादब्रीडावहित्थभयशङ्काः विंशतिर्वागारम्भानुभावे शृङ्गारिणः प्रियाचाटुकारस्य कस्यचित्पतीयन्त इति रसाधिकः // - रसालंकारसंकरोऽप्येतेन व्याख्यातः / रसवन्ति हि वस्तूनि सालंकाराणि कानिचित् / / एकेनैव प्रयत्नेन निर्वय॑न्ते महाकवेः // 173 // रसाक्षिप्ततया यस्य बन्धः शक्यक्रियो भवेत् / . अपृथग्यत्ननिर्वर्त्यः सोऽलंकारः प्रकृष्यते // 174 // रसाभावादिविषयविवक्षाविरहे सति / अलंकारनिबन्धो यः स कविभ्यो न रोचते // 175 // तत्र रसालंकारसंकरो द्विधा-रसप्रधानोऽलंकारप्रधानश्च / तयो. योऽनुभवित्रैव वर्ण्यते स रसप्रधानः / तत्र ह्यलंकारवतो वाक्यस्य वागारम्भानुभावत्वं भवति // तत्र रतावुपमायाः संकरो यथा'तीए दसणसुहए पैणअक्खलणजणिओ मुहम्मि मणहरे / रोसो वि हरइ हिअ मंअपंको व मिअलंछंणम्मि णिसण्णो 4855 [तस्या दर्शनसुभगे प्रणयस्खलनजनितो मुखे मनोहरे / रोषोऽपि हरति हृदयं मदपङ्क इव मृगलाञ्छने निषण्णः॥] - 1. 'अर्थस्य प्राकट्यं' क. 2. 'आभीष्टतमता' क. 3. 'मति' ख. नास्ति. 4. 'ब्रीडावहित्थामयशङ्काः' क. 5. 'निवर्त्यन्ते' क.ख.ग. 6. 'सोऽलंकारो ध्वनौ मतः' इति ध्वन्यालोके. 7. 'तयोर्ये' क. 8. 'पणअएवलण' क; 'पणअकवलण' ख. 9. 'मअअपंकोव' क., 'मअअंकोव्व' ख. 10. 'मअतद्वलण्णि निसण्णे' क.

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