Book Title: Sanghbhed Namnu Mahapaap
Author(s): Vijayjaidarshansuri
Publisher: Jinagna Prakashan

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Page 39
________________ 39 સંઘભેદ નામનું મહાપાપ और घणा जीव धर्म में द्रढहुआ अढाइ महोछवादिक होने से जैनधर्मकी घणी उन्नति हुइ बाद जेठ मास में श्रीपाली १रामपुर २,पंचमहाल ३,लुणावाडा ४,गोधरा ५,वगेर केतलाक गामों का संघकी तरफसे चौमासा की विनति छति पीण यहां के संधे बहुत अरज करके चौमासा यहां करवाया है यहां दो ठिकाने व्याख्यान वंचता है ओक तो मुनी जवाहीरसागरजी श्री आचारांगसूत्र नियुक्ति टीका समेत वांचते है श्रावक-श्राविका वगेरेह आनंद सहित सुनने को रोजीना आता है तेथी श्री धर्मकी वृद्धि होती है दुजा श्री तपगच्छ के श्रीपूज्यजी महाराज श्री विजयधरणेन्दसूरिजीकुं भी संघने चौमासा यहां करवायो है वां श्री पनवणा सूत्र वंचाता है ओक दिन श्रावको मुनी जवेरसागरजीने पूछा की अब के श्री पर्युषण मे सुदी 2 टुटी है सो अकम दूज भेली करणी के कोइ का केहेणा बारस तेरस भेगी करणी का हे वो करणी इसका उत्तर इस माफ क दिया कि श्री रत्नशेखरसूरिक त श्राद्धविधिकौमुदी अपर-नाम श्राद्धविधि ग्रंथ मे कह्यो छे कि प्रथम मनुष्य भवादिक काममां पामी निरंतर धर्मकरणी करवी निरंतर न बने तेने तिथि के दिने धर्मकरणी करवी यदुक्तं-जह सवेसु दिने (णे)सु पालह किरिअंतओ हवइ लठं (B) जय (इ)पुण तहा न सक्कह, तह विहु पालिपिळ...१ ओक पखवाडामे तिथी छ होवे-यदुक्तं-बि (बी) या पंचमी अष्ट (8) मी ग्यारसी (अगारसी) चौ (चउ) दसि (इसी) पण तिहीउ (ओ) अआओ सुह (य) तिहीउं (ओ) गोयमगणहारिणा भणिआ 1,, एवं पंचपर्वी पूर्णिमामावास्याभ्यां सह षट्पर्वी च प्रतिपक्षमुत्कृष्टतः स्यात् तिथी पिण जे प्रभाते पचखाण वेलाए उदियात होवे सो लेणी यदुक्तं तिथी (थि) श्च प्रातः प्रत्याख्यानवेलायां यः स्यात् स प्रमाणं सूर्योदयानुसारेणैव लोके पि दिवसादिव्यवहारात् आहुरपि-चाउम्मासी (सि) अवरिसे पक्खी (क्खि) अ पंचठ्ठमीसु नायव्वा / ताउ (ओ) तिहीउ जासिं उदेइ सु (सू) रो न अणा (ण्णा) ओ 1 पूआ पच्चक्खाणं पडिकमणं तह य नियमगहणं च जीए उदेइ सु (सू) रो तीह ती (ति) हीए उ कायव्वं 2 जो तिथिनो क्षय होवें तो पूर्वतिथिमें करणी जो

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