Book Title: Sambodhi 2000 Vol 23
Author(s): Jitendra B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

Previous | Next

Page 91
________________ पारुल मांकड SAMBODHI टीकाकार रत्नेश्वर के मुताबिक प्रस्तुत पद्य में अवयव द्योतक है, इवादि का व्यवधान होना चाहिए, परंतु ऐसा न होने से 'व्यस्त' नामक दोष आ गिरा है। (स. कं. पृ. २५९ ) 84 'सेतुबन्ध' के टीकाकार ‘रामसेतुप्रदीप' कार ने पूरा युग्मक (इस पद्य से तो पाअडदो० पद्य (४२) जुडा है) समझाया है। इसमें श्री राम धैर्यादि गुण को स्वयं ही बतातें हैं इतना निर्देश दिया है । तथा चातीव धैर्यादिगुणसंवलितमुक्तवानिति भावः ॥ (पृ. १०१ ) उम्मूलिओण खुलिआउक्खिप्यन्ताण उज्जुअं ओसरिआ । णिज्जन्ताण णिराआ गिरीण मग्गेण पत्थिआ णइसोत्ता ॥ (सेतु. ६ / ८९ ) - ( स. कं. पृ. ५०९ ) 1 उन्मूलितानां खण्डितान्युत्क्षिप्यमाणनिमृजुकमपसृतानि नीयमानानां निरायतानि गिरीणां मार्गेण प्रस्थितानि नदीस्रोतांसि ॥ यह पद्य भी भोज ने ही उद्धृत किया है। वे इसको परिकरालंकार के एक भेद - 'संबन्धिपरिकर' के लिए प्रस्तुत करतें है। वैसे प्रस्तुत पद्य में पर्वतों के साथ सरित्प्रवाहों की तुलना भी है, किन्तु वह गम्यमूलक है, क्योंकि इवादि प्रयोगरहित है । यथार्थ विशेषणों के प्रयोग में परिकरालंकार प्राप्त होता है । भोजदेव के मतानुसार नदीप्रवाह के लिए कविने पर्वत के लिए जो विशेषण उपयुक्त है, (जैसे पर्वत आकाशमार्ग से ले जाये जाते हैं, उन्हींकी तरह नदियाँ भी विस्तार प्राप्त करती है ।) वही दिये है । इस तरह संबन्धिपरिकरालंकार यहाँ पर जाना जा सकता है । डॉ. बसाक संपादित अज्ञातनामा 'सेतुतत्त्वचन्द्रिका' व्याख्या ने अंतिम पंक्ति में मनोरम भाव पेश किया है. आश्रयस्थैर्यादाश्रितस्याप्यस्थैर्यस्यौचित्यादिति भावः । (पृ. १८७ ) गमिआ कलम्बवाआ दिट्ठ मेहन्धआरिअं गअणअलम् । सहिओ गज्जिअसद्दो तह वि हु से णत्थि जीविए आसंगो || सेतु० १ / १५. गमिताः कदम्बवाता दृष्टं मेघान्धकारितं गगनतलम् । सोढो गर्जितशब्दस्तथापि खल्वस्य नास्ति जीवितेऽध्यवसायः ॥ ( स. कं. पृ. ४९९ ) भोज ने आक्षेप अलंकार के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत पद्य उद्धृत किया है । कदम्बानिल चले गयें है, गगन मेघ से आच्छादित है । गर्जन शब्द भी सहन कर लिया, फिर भी इनका (रामका) जीवन प्रति आसङ्ग (अध्यवसाय) क्यों नहीं बढता ? - इस तरह आक्षेप है । भोज के टीकाकार ने यहाँ 'कारणाक्षेप' बताया है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157