Book Title: Sambodhi 2000 Vol 23
Author(s): Jitendra B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 110
________________ क्रम १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. उद्धरण प्रतीक अव्वोच्छिण्ण. उअहिस्सजसे . उम्मूलिओण. गमिआकलंबवाआ. जह जह णिसा. जस्स विल्लगन्ति. मह अवअितुङ्ग. ण कओ. परिशिष्ट सेतुबन्ध के उद्धरणों की संदर्भयुक्त तालिका सेतु. के सर्ग एवं काव्यशास्त्रीय ग्रंथ पद्यक्रमांक ३/३७ स.कं. (पृ. ४३२) ४/४३ ६/८१ १/१५ ५/१० १/७ १/१ ११/६६ स.कं. (पृ. २५९) स.कं. (पृ. ५०९) स.कं. (पृ. ४९९) स.कं. (पृ. ५१६) सा. मी. (पृ. १४१) स.कं. (पृ. ३१९) स.कं. (पृ. ६३१) सा. मी. (पृ. ६७ ) विशिष्ट संदर्भ साम्यालकार अव्यवहित दोष के भेद 'व्यस्त' नामक दोष परिकारालंकार के भेद सबन्धी परिकर के लिए । आक्षेपालंकार क्रियापरिकर कविसमय स्वाभाविकविभावना 'चित्रा' नामक करुण विप्रलंभ प्रलय-मूर्च्छा-स्तम्भ किंचित् उल्लेखनीय सेतु. के टीकाकार रामदास के मतमें दृष्टात टीकाकार इस के बारे में मौन हैं। श्वर ने कारणक्षेप बताया है। रामदास भूपति अनुसार उत्प्रेक्षा । रामदास उत्प्रेक्षामूला सहोपमा । रामदास सेतुतत्त्व दोनो विरोधाभास मूला विभावना तथा स्वाभाविक विभावना अनायास अलंकारप्रयोग - Vol. XXIII, 2000 काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में 'सेतुबन्ध' के कतिपये उद्धरण... 103

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