Book Title: Sambodhi 2000 Vol 23
Author(s): Jitendra B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 96
________________ Vol. XXIII, 2000 89 काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में 'सेतुबन्ध के कतिपय उद्धरण... धैर्यमिव जलसमूहं तिमिनिवहमिव सपक्षपर्वतलोकम् । नदीस्रोतांसीव तरङ्गान् रत्नानीव गुरुकगुण शतानि वहन्तम् ॥ भोजने प्रस्तुत पद्य सहोक्ति अलंकार के उदाहरण स्वरूप पेश किया है। यहाँ अविविक्तकर्म में क्रियासमावेश होने से इव शब्द जहाँ 'सह' शब्द का स्थान ग्रहण करता है, वह ससादृश्या सहोक्ति अलंकार है। अत्र धैर्येण सह जलसमूहस्य तिमिनिवहेन सपक्षपर्वतलोकस्य, नदीस्रोतोभिस्तरङ्गाणाम् रत्नैश्च गुरुकगुणशतानां मिथः प्रतीयमानं सादृश्यमिवेन द्योत्यते । - (पृ. ४८३) रामदास भूपति यहाँ सहोपमालंकार मानते हुए प्रतीत होते हैं। (पृ. ४२) 'सेतुतत्त्वचन्द्रिका' भी सहोपमा ही स्वीकार करती है। ... अन्योन्यसाहचर्यात् सहोपमेयम् । - (पृ. ३७) धीरेण समं जामा हिअएण समं अणिट्ठिआ उवएसा । उत्सा(च्छा)हेण सह भुआ वाहेण समं गलंति से उल्लावा ॥१७॥ (सेतु १/१२) धैर्येण समं यामा हृदयेन सममनिष्ठिता उपदेशाः । उत्साहेन समं भुजौ बाष्पेण समं गलन्ति तस्य उल्लापाः ॥ प्रस्तुत पद्य को भोज नरेन्द्रप्रभसूरि और सा.मी.कार उद्धृत करतें हैं। भोज ने इस में कर्ता और क्रिया के मिश्र समावेश युक्त वैसादृश्यवती सहोक्ति को परखा है। (पृ. ४८३) नरेन्द्रप्रभ इस पद्य में सहोक्ति का ही प्रतिपादन करतें हैं। अत्र गलन्तीति क्रियारूपं सर्वान् प्रत्येकधर्मत्वमिदमेव दीपकं च । (पृ. २३३) वास्तव में यह मालारूप दीपकोपस्कृता सहोक्ति है। भोज से प्रेरित होते हुए नरेन्द्रप्रभ ने प्रस्तुत उदाहरण दिया है ।१८ रामदास भूपति की 'रामसेतुप्रदीप' टीका में 'सहोक्ति' अलंकार ही माना है। - सहोक्तिरलङ्कारः (पृ. ११२) ‘सेतुतत्त्वचन्द्रिका' टीका ने प्रस्तुत पद्य में कोई अलंकारविशेष का निर्देश नहीं किया है। (पृ. ११६) मुदमल्ल का मंतव्य नरेन्द्रप्रभसूरि के समान है। अत्र तृतीयान्तैः समं प्रथमान्ता गलन्तीति संबध्यन्ते । सहोक्तिदीपकसंकरः । (पृ. २९७)

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