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SAMBODHI
पारुल मांकड ४. तिलकमंजरी, सं. डॉ. नारायण कंसारा, एल. डी. इन्स्टिट्यूट ऑफ इन्डॉलोजी, अहमदाबाद, ई.स. १९९१.
पद्य - २२. ५. ध्वन्यालोक (ध्वन्या.) (अ) सं. रामसागर त्रिपाठी, मोतीलाल बनारसी दास, वाराणसी, ई.स. १९६३ (ब)
सं. जगन्नाथ पाठक, चौरवम्बा विद्याभवन, वाराणसी - १. ई.स. १९६५. (क) सं. ॉ. तपस्वी नान्दी,
सरस्वती पुस्तक भंडार, अहमदाबाद, ई.स. १९९७-९८. ६. डॉ. राधागोविंद बसाक (बसाक.) (Sanskrit College, Culcutta, 1959) - की सेतु.की आवृत्ति में
निम्नोक्त पाठ प्राप्त होता है। - वाम - पओहर - पेल्लिअ-विसमुण्णअ-अहिणत्थणी जणअसुआ। - सेतु. ११/५४ ७. डॉ. बसाक में निम्नोक्त पाठान्तर है - ण कओ बाह - विमोक्खो णिव्वण्णेउम्पिणचइअं राम-सिरं । ___णवर पडिवण्ण-मोहा-गअ-जीविअ-णीसहमहीअणिवण्णा ॥ - ११/५५ (पृ. ३८५) ८. पडिआ उर-सन्दाणिअ-महि-अल-चक्कलइअत्थणी जनकसुआ। - ११/६७ ९. डॉ. बसाक. महिला चीहच्छं - पाठ है। १०. ध्वन्या. डॉ. नान्दी, पृ. ५५३ ११. सरस्वती कंठाभरण (स.कं.) संशो. केदारनाथ - वासुदेव शास्त्री काव्यमाला, जयपुर, १९२४. १२. साहित्यमीमांसा (सा.मी.) 'अलंकार - सर्वस्व'कार रुय्यक इस कृति के कर्ता माने जाते हैं, कोई कोई मंखक
को भी मानते हैं । रुय्यक ध्वनिवादी आलंकारिक है, और यह कृति मालवपरंपरा के भोज और धनंजय धनिक . का अनुसरण करती है, अतः इसका कर्तृत्व शंकास्पद है। इस कारण सा.मी. के संदर्भो की आलोचना अंत
में की गई है। १३. डॉ. बसाक की आवृत्ति में यह पद्य नहीं है, इसके बदले जो पद्य है, वह इसका भावसाम्य रखता है।
कुलनाथ - विलग्गन्ति पाठ है।
प्रॉ. हेन्दीक्वी. Notes - p. 3) १४. डॉ. बसाक में समग्र पद्य का पाठ कुछ अलग है -
तह णिमिअ च्चिअ दिडठी मुक्क-कवोल-विहुरो उरच्चिअहत्थो । गअ-जीविअ-णिच्चेटठा णवरि असामहि-अलं थण-हरेण गआ ॥ - ११/६४
भारतीय विद्या. और हेन्दीक्वी. में इसका क्रम ११/६५ है। १५. अर्थान्तरं न्यस्यति - अज्ञातः कुसुमनिर्गमो येषां तथाविधा ये द्रुमाः फलं ददति तेऽपि वनस्पतयः स्तोका एव ।
तथा च द्रुमप्रायाः सत्पुरुषाः कुसुमनिर्गमप्रायाणि वचनानि फलप्रायं कार्यमिति । अभणन्त इति केचित् 'कज्जअलावे' इति पाठे कार्यकलापात् ।। अलं. महो. - (पृ. ६०)