Book Title: Sambodhi 2000 Vol 23
Author(s): Jitendra B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 106
________________ 99 Vol. XXIII, 2000 काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में 'सेतुबन्ध' के कतिपय उद्धरण... भोज में सेतु. के अलग पाठ भी मिलते हैं, जो सेतु. का विवेचनात्मक व तुलनात्मक अभ्यास करनेवालों को खूब सहायभूत हो सकते हैं। हेमचन्द्र ज्यादातर अलंकारप्रयोग में, नरेन्द्रप्रभ रस और अलंकार के संदर्भ में, विद्यानाथ काव्यप्रयोजन के संदर्भ में तथा सा.मी.कार भोज की तरह अलंकार, कविसमय इत्यादि को स्पष्ट करने के लिए सेतु. के उद्धरण उटूंकित करतें हैं। उपसंहार ___ इस प्रकार काव्यशास्त्रीय ग्रंथों में 'सेतुबन्ध' के उद्धरण (१) उचित अलंकार प्रयोग के लिए (२) करुणविप्रलंभ रस के संदर्भमें (३) अन्योक्ति अथवा अप्रस्तुतप्रशंसा अलंकार के संदर्भ में (४) वाच्यं और व्यंग्य के तुल्य प्राधान्य को लक्षित करने में (५) स्तम्भ, प्रलय (= मूर्छा) इत्यादि सात्त्विक भावों के संदर्भ में (६) वक्तव्यार्थ (कर्तव्यकाव्य) के उपलक्ष्य में (७) काव्यप्रयोजन के रूप में (८) दृष्टांत, निदर्शना, मालोपमा, प्रतिवस्तूपमा, अर्थान्तरन्यास, सहोक्ति, अतिशयोक्ति आदि अर्थालंकारो के उद्धरण स्वरूप (९) रसाभास (१०) अभावप्रमाण तथा (११) कविसमय के उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए उल्लेखित किये गये हैं। ये सभी उद्धरण में सेतु.की उपलब्ध आवृत्तियों से कभी कभी अलग पाठान्तर भी मिलतें हैं, जिसका यथातथ निर्देश हमने उचित स्थान पर किया ही है। प्रायः ये उद्धरण रस-भाव और अलंकार के संदर्भ में कुछ ज्यादा ही मिलतें हैं। महाराष्ट्री प्राकृत में और जैनेतर प्राकृत भाषाकीय ग्रंथ होते हुए भी हेमचन्द्र और नरेन्द्रप्रभसूरि जैसे जैनाचार्यों ने काफी हद तक सेतु. से उद्धरण उम॒क्ति किये हैं। भोज और सा.मी.कार ने तो कई उद्धरण समान्तररूप से प्रस्तुत किये हैं। सगं अपारिजाअं... में अभिनवगुप्त और हेमचन्द्रने अप्रस्तुतप्रशंसा माना है, जबकि, भोज व सा.मी.कार इसमें अभाव द्वारा अभाव प्रमाण को सिद्ध होते हुए बतलाते हैं । इस प्रकार काव्यशास्त्रीय ग्रंथों में सेतु. के बिखरे मोती इस शोधपत्र में एकत्रित करनेका और उनकी समीक्षा करने का प्रयास किया है। इति शिवम् । पादटिप्पण १. सेतुबन्धम् (सेतु.) श्री रामदास भूपति की टीका ‘रामसेतुप्रदीप' समेत सं.पं शिवदत्त, भारतीय विद्याप्रकाशन, दिल्ली-बनारस-ई.स. १९८२ (सेतु. भारतीय विद्या.) २. काव्यादर्श (का.द.) सं.र्डा. जागृति पंड्या, सरस्वती पुस्तक भण्डार, अहमदाबाद, ई.स. १९९४-९५. ३. हर्षचरित - सं. ॉ. जगन्नाथ पाठक, चौखम्बा विद्याभवन, १९५८. प्रारंभिक पद्य - १४

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