Book Title: Sambodhi 2000 Vol 23
Author(s): Jitendra B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 105
________________ 98 यथा पारुल मांकड शोभेव लक्ष्मणमुखं वनमालेव विकटं हरिपतेसरः । कीर्तिरिव पवनतनयमाज्ञेव बलान्यस्य विलगति दृष्टिः ॥ हेमचन्द्र यहाँ अभिन्न साधारणधर्मा मालोपमा स्वीकार की है । - अत्र उल्लेखगर्भित उपमा भी मानी जा सकती है, क्योंकि एक ही दृष्टि अलग अलग वस्तु पर पड़ती है। इस तरह से से ही सा. मी. कार ने 'समय' के अनुसंधान के अंतर्गत एक और उदाहरण पेश किया है सेवन्ति तीरवड्ढं अकुसुमभरो अत्तचन्दणलआ । लिद्घो मत्तणदं पवहे वणगिरिदाणलप्पवहो । (पृ. १४० ) सा.मी.कार ने समय को अलयित न करने की शिक्षा कविसमुदाय को दी है। जैसे सत् की उपेक्षा । चन्दन वृक्ष के फल और पुष्प होते हुए भी कविसमयानुसार नहीं दिखाना चाहिए। सेतु का उद्धरण इसलिए ही सा. मी. उद्धृत किया है । किन्तु इस उद्धरण का पाठ मुद्रित पुस्तक में अलग है । ने - SAMBODHI सेवन्ति तीरवड्डअणिअअभरोव्वत्तचन्दणलआलिद्धे । रम्मत्तणदिप्पवहे वणगअदानकडुए गिरिणईप्पवहे ॥ ( सेतु. १ / ६१ ) सेवन्ते तीरवर्धितनिजकभरापवृत्तचन्दनलतालीढान् । रम्यतृणदीप्रपथान्वनगजदानकटूगिरिनदीप्रवाहान् ॥ सो यहाँ पर चन्दन की लताओं का ही निर्देश है । प्रॉ . हिन्दीक्वी की आवृत्ति के टिप्पण-विभाग में टीका से उद्धरण लिए गए है । २८ आनन्दवर्धन ने विशिष्ट उद्धरण नहीं दिये । अभिनवगुप्त ने सग्गं. इत्यादि प्रसिद्ध और अन्य आलंकारिको को भी प्रिय उद्धरण दिया है। भोजदेवने लगभग २६ बार सेतु के उद्धरण अवतरित कियें है | २५ जिनमें से कुछ पूर्वाचार्यों में तो कुछ अनुगामियों में भी मिलतें हैं । हेमचन्द्रने ६, नरेन्द्रप्रभ ने तीन, विद्यानाथने एक और सा. मी. कार ने सात पद्य उद्धृत किये हैं । भोज के पसंदगीदा उद्धरणों में वैविध्य है। आम तोर पे भोज की अलंकार निरूपणा कुछ अलग तरीके है। ख़ास कर के उनका अलंकार भेद-प्रभेद निरूपण सूक्ष्मता और विविधता से सजीला बना है । सेतु० कई उद्धरण भोजने उपमा, रूपक, साम्य, अतिशयोक्ति, परिकर आदि अलंकार प्रभेद के लिए उद्धृत किये हैं। इनमें से एक दो को छोडकर (हेमचन्द्र, सा. मी. उपमा, अतिशयोक्ति) अन्यत्र कहीं कोई भी उद्धरण पाया नहीं जाता। सिर्फ अर्थालंकारभेद के लिए ही नहीं, किन्तु भोजदेव ने नायिकागुण, विलाप, वृत्ति अभावप्रमाण और काव्यदोष के संदर्भ में भी सेतु से कई उद्धरण अंकित किये हैं। प्रॉ. हेन्दीक्वी अपनी सेतु. की आवृत्ति में टिप्पण में स. कं. का सोद्धरण निर्देश करते हैं ।

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