Book Title: Saman Dhamma Rasayanam
Author(s): Dharmdhurandharsuri, Bhuvanchandravijay
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 24
________________ अज्जवं (आर्जवम्) ( देशी - परतीर्थी परना सुरं जेणे चैत्यग्रह्या वळी जेह) - ३ १५ चेयण? अज्जवमज्जउ सरलं; चेयणअज्जवमउलं विउलं जेणं, हियये धरियं णिचं सइ संपजइ सयला सिद्धी सिज्झइ तस्स सुकिच्चं ।। १ ।। चेयण. मायामच्चुअज्जवममयं उभयं खु दिणरती / जस्स मणंगणु जत्थ विलग्गं, तस्स तंहा फलपत्ती ।। २।। चेयण. संसारम्मि मायामग्गो वंको वंकं जाइ । सरलो अज्जवमग्गो गच्छइ, गेहं मुत्तिरमाइ ।। ३ ।। चेयण. माया महसप्पिणी सप्पइ बहुजीहा अइदप्पा । विसं वमइ, एयं हणइ, अजवगरुल महप्पा ।। ४।। चेयण. माया णियमायं दंसिता, करिसइ पढमं लोगं । दुहजालम्मिता पाडिता, अप्पड़ पइपयसोगं ।। ५ ।। चेयण. गत जम्मम्मि मल्लिजिणेणं, तवमइतिव्वं तत्तं । जिणवर गुत्तं णिचियं तहवि, थित्तणिअईयपत्तं ।। ६ ।। चेयण. णियई विगईदुग्गईजणणी, जणयइ संरिउभावो । संतावो सययं णियईइ अज्जवओ सुहभावो ।। ७।। चेयण. मायामोह - तमोहतमोहं, एयं पइजइ जागरह / धम्मधुरंधरवरगुणसत्तं, मुत्तिवहू लहुवरइ || ८|| चेयण.

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