Book Title: Saman Dhamma Rasayanam
Author(s): Dharmdhurandharsuri, Bhuvanchandravijay
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha
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२२
"समण धम्म रसायणं" वित्ति कलियं
मुत्ती (मुक्तिः - निर्लोभता) - ४ मुत्तिमुत्तामालं - धरह - जइ इच्छह सिवबालं धरह - गुणमणिजुत्ता मुत्तिमाला, अप्पड़ सुहं विसालं । हियये जस्स ठिआ सो जयइ लोहं हंत करालं ।। १।। धरह. अईव विरुवा तण्हाजाला पण्णं पकुणइ कालं । पसमेइ घणपंती मुत्ती तं, तण्हं विसमविआलं ।। २।। धरह. लोहपिसाओ हणइ सायं गेड़ तहा वहजालं; णिहणइ तं मुत्ती महदेवी, मऊरवहू जह वालं ।। ३ ।। धरह. जहजह लाहो लोहो, तहतह वड्डइ पलंबफालं । तस्स ण अॅतो दीसइ कत्थवि हवइ भमो चिरकालं।।४।। धरह. कविलमुणिण्णा सच्चं गीयं, अमयसमाणं सालं । मासजुयलकणयस्सविकलं करिलं कोडीनालं ।। ५।। धरह. मुत्तिविमुत्तासत्ता सययं पविसंति पायालं; आरहंति गुरुगिरिसिहरम्मि जलं तरंति विसालं।। ६।। धरह. मुत्तीइ चत्तं चंकमिऊणं, करइ जणं कंकालं; लोहो हा ! हा ! रक्ख सरुवो णचङ्गाइ सतालं।। ७।।
धरह. तोससंतोत्सासुयामुत्तीइ, दंति भवं जीहालं । धम्मधुरंधरपय पत्तीइ, धरह मुत्तिवरमालं ।। ८।। धरह.

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