Book Title: Samacharishatakama
Author(s): Samaysundar,
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar
View full book text
________________
८५
सामाचा-18 तउ भवसिन्धुकुलगुरुपादमूले द्वादशावर्तवन्दना दियइ, शक्तिसंभवइ चउविहार उपवास प्रत्याख्यान करइ, शक्ति असं-18 पौषधग्रहरीशत- भषइ सुगुरूपदिष्टतिविहारोपवास प्रत्याख्यान करइ, पछे एक खमासमणे इच्छाकारेण संदिसह भगवन् बहुबेलं संदिसा- णाधिकार: कम्। वेमि भणी। बीय खमासमणे भगवन् बहुबेलं करेमि पाछइ एक खमासमणे इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सज्झायं संदि-10
सावेमि ३ चउत्थ खमासमणे इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सज्झायं करेमि इसुंभणि ४ पांचमइ खमासमणे इच्छा० सं० ॥१६८॥
भ० बइसणं संदिसावेमि ५ छट्ठइ खमासमणे इच्छा० सं०, भ० बइसणं ठाएमि इसु भणइ ६ पछई उपधान तप तण द्वादशावर्त वांदणा देइ करी मुहपत्ति मुखे देइ करी मधुरस्वरइ सज्झाय करइ इति । तओ जायाए पऊण पोरिसिए खमासमणदुगेण पडिलेहणं संदिसाविअ मुहपत्तिं य पडिलेहिय भोयणपाणभायणाइ पडिलेहइ, तओ पुणो सज्झायं करेइ आव कालवेला ताहे आवस्सिआइ पुर्व चेइहरे गंतुं देवे वंदेइ, उवहाणवाही पुण पंचहिं सक्कथएहिं देवे वंदेइ तओ जइ पारणाइ तओ पञ्चक्खाणे पुने खमासमणदुगपुवं मुहपत्तिं पडिलेहिअ भणइ भातपाणी पारावेह उवहाणी नवकारसहिओ चउविहारो इयरो भणइ पोरिसो पुरिमड्डो वा तिविहाहारं चउविहाहारं वा एकासणं नीवी आंबिलं वा जाव काइवेलातीए भत्तपाणं परावेमित्ति, तओ सक्कथयं भणिय खणं सज्झायं च काऊं जहा संभवं अतिहिसंविभागं काऊं मुह हत्थे पडिलेहिअ नमुक्कारपुवं अरत्त दुट्ठो असुरसुरं अचवचवं अद्धअम विलंबिअं अपरिसाडिअं जेमेइ, तं पुण निअ-15॥१६८॥ घरे अहाप्पवत्तं फासुअंति पोसहसालाए वा पुवसंदिट्ठसयणोवणीयं न य भिक्खं हिंडइ, तओ आसणाओ अचलिओ |चेव दिवसचरिमं पञ्चक्खइ तओइरियावहियं पडिक्कमिअ सक्कथयं भणइ, जइ पुण सरीरचिंताए अट्ठो तो नियमा *
समणदुगेण पाडला आवस्सिआइ पु
गपुवं मुहपत्ति बाहर चउविहाहार जहा संभवं
Jain Education Inter
R
092 Personal Use Only
aw.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398