Book Title: Samacharishatakama
Author(s): Samaysundar,
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar
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OBCHOCARUSOPRASURE
हिअ पढमखमासमणेण पोसहं संदिसाविअ बीअखमासमणेण पोसहं ठाएमित्ति भणइ, तओ वंदिय नमुक्कारतिगं कड्डिय करेमि भंते पोसहमिच्चाइ दंडगं वोसिरामि पजंतं भणइ, तओ पुबुत्तविहिणा सामाइयां गिण्हइ, वासासु कट्ठासणं सेसदुमासेसु पाउंछणं च संदिसावेमि अउवउत्तो सज्झायं करितो पडिक्कमणवेलं जाव पडिवालिअ पभाइ पडिक्कमई", अत्र
श्रीतरुणप्रभसूरिवचसा साधुवत् बहुवेलं संदि० बहुवेलं करेमि त्ति क्षमाश्रमणद्वयं दत्ते । तओ आयरियं उवज्झायं सव६ साहूं वंदइ तओ जइ पडिलेहणाए सवेला ताहे सज्झायं करेइ, जायाए अ पडिलेहणाए वेलाए खमासमणदुगेण पडि
लेहणं संदिसावेमि पडिलेहणं करेमि त्ति भणिय मुहपोत्तिअं पडिलेहइ, एवं खमासमणदुगेण अंगपडिलेहणं करेइ, इत्थ अंगसद्देण अंगट्ठि कडिपट्टाइ नेअं इइ गीयत्था ।" अत्रान्तरे पहिरणउ पडिलेही थापनाचार्य पडिलेहइ इति श्रीतरुणप्रभसूरिवचनं, तो उवणायरियं पडिलेहिता नवकारतिगेणं ठविअ कडिपट्टयं पडिलेहिअ पुणो मुहपत्तिं पडिलेहिता खमासमणदुगेण उवहिपडिलेहणं संदिसाविअ कंबलवत्थाई, अवरण्हे पुण वत्थकंबलाई पडिलेहइ । तओ पोसहसालं पमजिअ कजयं विहिए परिद्वविअ, इरियं पडिक्कमिअ सज्झायं संदिसाविअ गुणणपढणपुच्छयवायणवक्खाणसवणाइ करेइ । अत्राऽवसरे ईर्यापथिकीप्रतिक्रमणानन्तरं श्रीतरुणप्रभसूरिवालावबोधपाठ एवं, तथाहि-"एकखमासमणे सज्झायं संदिसावेमि भणी, बीअ खमासमणे सज्झायं करेमि इसउ भणइ, पछइ बइसीकरी विधिसु सज्झाय करइ।" अथ श्रीतरुणप्रभसूरिबालावबोधादौ प्रोक्तं नाऽस्ति परं साप्रतं गच्छप्रवृत्त्या 'उप्पन्नं केवलं नाणं' इति पर्यन्तमुपदेशमालासूत्रं जानुभ्यां स्थित्वा गुणयन्ति, जओ गुरुसुं पडिकमिउं न हुवइ अथवा गुरुसुं पडिकमिउं हुवइ ते जो उपधान करतो हुवइ |
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