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चित्र नं. १३
वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ खड़े भगवान के चारों तरफ अग्नि की लपटें देखकर गौशालक भाग खड़ा हुआ। कलंबुका में भगवान को तथा गौशालक को चोर समझकर रस्सों से बाँध दिया। पीड़ा देने पर भी प्रभु मौन रहे। गौशालक हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगा। असलियत पता होने पर मेघ ने प्रभु से क्षमा माँगी।
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