Book Title: Sachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Author(s): Purushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti

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Page 311
________________ इन्द्र ने शिविका उठाई। संस्कार स्थल पर चन्दन की चिता में प्रभु का शरीर रखा गया। अग्निकुमार ने अग्नि प्रज्वलित की। वायु कुमार देवों ने वायु प्रज्वलित की। अन्य देवों ने घृत और मधु चिता में उड़ेला । इस प्रकार प्रभु महावीर का अंतिम संस्कार पावापुरी में सम्पन्न हुआ । फिर मेघकुमार ने जल की वर्षा कर चिता शांत की । शक्रेन्द्र ने ऊपर की दाईं दाढ़ों का और ईशानेन्द्र ने बाईं दाढ़ों का संग्रह किया। इस प्रकार चमरेन्द्र और बलिन्द्र ने नीचे की दाढ़ों को लिया । अन्य देवों ने दाँत और अस्थि - खण्डों को लिया। मानवों के हिस्से भस्म आई।१०२ भगवान महावीर के बड़े भ्राता नन्दीवर्द्धन ने उनकी स्मृति में भव्य स्मारक का निर्माण किया । भाई नन्दीवर्द्धन व भैयादूज प्रभु महावीर के बड़े भ्राता नन्दीवर्द्धन कुण्डलपुर के राजा थे। वह जब प्रभु महावीर का निर्वाण हुआ, तब उपस्थित थे। उन्हें इतना आघात पहुँचा कि उन्होंने खाना-पीना तक छोड़ दिया। बहिन सुदर्शना ने उन्हें अपने घर बुलाकर संसार की क्षणभंगुरता का ज्ञान कराया। साथ भोजन करवाया। भोजन के उपरांत तिलक किया। उस दिन का नाम भैयादूज पड़ा। १. (क) ज्ञाताधर्मकथांग १/११, (ख) त्रिपटिशलाका पुरुष चरित्र १० / ६ / ३१२-४०६, (ग) महावीर चरियं (गुणचन्द्र ) प्रस्ताव, ८ २. विषष्टिशलाका पुरुष चरित्र १०/६/४३० ३. (क) आचारांगसूत (ख) कल्पसूत ४. (क) भगवती ४/६/३८१ (ख) विषष्टिशलाका पुरुष चरित्र १०/८/१०-११ ५. (क) भगवती ९/६ (ख) महावीर चरियं (गुणचन्द्र) प्रस्तावना. प. २५५-२६० (ग) विषष्टिशलाका पुरुष चरित्र १०/८/१-२७ ६. भगवती, श. ९ / ३३३ ७. (क) विपशिलाका पुरुष चरित्र १०/८/३९ (ख) महावीर चरियं ( गुणचन्द्र ) ८ / २६१ ८. (क) महावीर चरियं ( गुणचन्द्र ) (ख) लिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र १०/८/३० ९. भगवती, श. १२, उ. २ १०. अन्तकृद्दशा, अनुत्तरोबबाईदसाओ, पृ. ३४ (एन. पी. वैद्य सम्पादित) ११. उपासकदशांगसूत्र, अ. १ ( आचार्य श्री आत्माराम जी) १२. (क) विषष्टिशलाक, पुरुष चरित्र १०/१०/८४ (ख) उपदेशमाला सटीक, गा. २० प. २५६ (ग) भरत - बाहुबलि, भाग १, प. १०७ १३. विषष्टिशलाका पुरुष चरित्र १०/१० / १२३ १४. वही १०/१० / १३७-१३८ १५. वही १०/१०/१६५- १८१ Jain Educationa International १६. १७. १८. भगवती, श. १६. उ. ६ १९. (क) उतराध्ययन भावविजयगणी की टीका १८/५, प. २१. २२. २०. (क) आवश्यकचूर्णि ३९९. इस चैत्य का सुन्दर वर्णन उबवाईसूत्र में उपलब्ध होता है। विपाकसूत्र, द्वितीय श्रुतस्कन्ध, नौवाँ अध्ययन २५. २६. २७. २८. ३८० (ख) आवश्यकचूर्णि उत्तरार्द्ध प. १६४ (क) बृहत्कल्पभाष्य वृत्ति सहित विभाग २, गा. ९९७९९९, पृ. ३१५, (ख) भगवतीसूत्र, श. १३, उ. ६ २३. आगम और त्रिपिटक एक अनुशीलन, पृ. २ २४. (क) आवश्यकचूर्णि, पृ. २३४, (ख) उत्तरा नेमिचन्द्र, पृ. २५५, (ग) उत्तराध्ययन भावविजयगणी १८/५, पत्र ३८० आवश्यकचूर्णि ३९९ सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र (ख) त्रिपटिशलाका पुरुष चरित्र १०/१ त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र १० / ९ (क) आवश्यकचूर्णि (ख) उत्तराध्ययन, अ. १८ उपासकदशांग, अ. ३ वही, अ. ४ २९. भगवती, श. ११, उ. १२, सू. ६ ३०. वही ११ / १२ / ८ ३१. उपासकदशांग, अ. ५ ३२. अन्तकृद्दशांग, वर्ग ३, अ. ४ ३३. श्रेणिक चरित्र (त्रिलोक ऋषि जी कृत ) For Personal and Private Use Only २५१ www.jainelibrary.org

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