Book Title: Sachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Author(s): Purushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti

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Page 319
________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only काल-गणना काल के इस स्थूल विभाजन के साथ ही जैन ग्रन्थों में काल का अति सूक्ष्म, विस्तृत और वैज्ञानिक विभाजन भी उपलब्ध है। इस विभाजन के दो अंग हैं--प्रथम संख्यात काल तथा दूसरा औपमिक काल। संख्यात काल: सूक्ष्मतम निर्विभाज्य काल = १समय असंख्यात समय १ आवलिका संख्यात आवलिका १ उच्छ्वास अथवा १ निःश्वास १ उच्छ्वास + १ निःश्वास १ प्राण ७प्राण = १ स्तोक ७ स्तोक = १लव ७७ लव = १ मुहूर्त ३० मुहूर्त = १ अहोरात्र १५ अहोरात्र १पक्ष २ पक्ष १मास २ मास १ऋतु ३ ऋतु १ अयन २ अयन १ संवत्सर ५ संवत्सर १ युग २० युग = १ शताब्दी १० शताब्दी = १ सहस्राब्दी १०० सहस्राब्दी १ लक्षाब्दी ८४ लक्षाब्दी = १ पूर्वांग ८४ लक्ष पूर्वांग = १ पूर्व 'पूर्व' के बाद पच्चीस इकाइयाँ और हैं जो प्रत्येक पूर्ववर्ती इकाई से ८४ लाख गुणा अधिक हैं। अन्तिम इकाई का नाम शीर्ष प्रहेलिका है जिसमें ५४ अंकों के बाद १४० शून्य होते हैं। यह लगभग ७.५८२ - १०१९३ के बराबर होती है। www.jainelibrary.org (७)

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