Book Title: Sachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Author(s): Purushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti

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Page 279
________________ महावीर - "गांगेय ! पृथ्वीकायादि जीव सान्तर उत्पन्न नहीं होते, वे अपने-अपने स्थानों में निरन्तर उत्पन्न होते रहते हैं ।” गांगेय - "भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ?" महावीर - "गांगेय ! द्वीन्द्रिय जीव सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी ।" इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय तिर्यंच, मनुष्य और देव भी सान्तर और निरन्तर उत्पन्न होते हैं।" गांगेय - “भगवन् ! नैरयिक सान्तर च्यवता है या निरन्तर च्यवता है ?” महावीर - "गांगेय ! नैरयिक सान्तर भी च्यवता है और निरन्तर भी च्यवता है ।" इसी प्रकार द्वीन्द्रिय, लीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय, तिर्यंच, मनुष्य तथा देव भी कभी सान्तर और निरन्तर च्यवते हैं परन्तु पृथ्वीकायिक आदि निरन्तर उत्पन्न होने वाले एकेन्द्रिय जीव निरन्तर ही च्यवते हैं। गांगेय - "भगवन् ! प्रवेशन कितने प्रकार के कहे हैं ?" महावीर–‘“गांगेय ! प्रवेशन चार प्रकार के कहे हैं - (१) नैरयिक प्रवेशन, (२) तिर्यक् योनि प्रवेशन, (३) मनुष्य प्रवेशन, (४) देव प्रवेशन । उसके पश्चात् भगवान ने विभिन्न नैरयिकों के प्रवेशन के सम्बन्ध में विस्तृत सूचनाएँ दीं । गांगेय–“भगवन् ! तिर्यंचयोनिक प्रवेशन कितने प्रकार का कहा है ?” महावीर - "गांगेय ! पाँच प्रकार का कहा है- एकेन्द्रिय योनिक प्रवेशनक यावत पंचेन्द्रिय योनिक प्रवेशनक। उसके पश्चात् भगवान ने विस्तृत रूप से उसके सम्बन्ध में वर्णन किया ।" गांगेय-‘“भगवन् ! मनुष्य प्रवेशन कितने प्रकार का है ?" महावीर-"वह दो प्रकार का है - (१) सम्मूर्च्छिम मनुष्य प्रवेशनक, और (२) गर्भज मनुष्य प्रवेशनक।” उसके बाद भगवान ने उसका विस्तार से विश्लेषण किया । गांगेय-“भगवन् ! देव प्रवेशनक कितने प्रकार का है ?" महावीर - "गांगेय ! देव प्रवेशनक चार प्रकार का है - ( १ ) भवनवासी देव प्रवेशनक, (२) वाणव्यन्तर, (३) ज्योतिष्क, और (४) वैमानिक । उसके सम्बन्ध में फिर भगवान ने विस्तार से वर्णन किया । गांगेय- - "भगवन् ! सत् नारक उत्पन्न होते हैं या असत् । इसी प्रकार सत् तिर्यंच, मनुष्य और देव उत्पन्न होते हैं या असत् ?” महावीर-‘“गांगेय ! सभी सत् उत्पन्न होते हैं, असत् कोई भी उत्पन्न नहीं होता ।” गांगेय - “भगवन् ! नारक, तिर्यंच और मनुष्य सत् मरते हैं या असत् ? इसी प्रकार देव भी सत् च्युत होते हैं या ० असत् ?” महावीर - "गांगेय ! सभी सत् मरते हैं, असत् कोई नहीं मरता । गांगेय-‘“भगवन् ! सत् की उत्पत्ति कैसी ? और मरे हुए की सत्ता किस प्रकार ?" महावीर - "गांगेय ! पुरुषादानीय पार्श्व अरिहन्त ने लोक को शाश्वत कहा है। उसमें सर्वथा असत् की उत्पत्ति नहीं होती और 'सत्' का सर्वथा नाश भी नहीं होता । ७२ गांगेय-‘“भगवन् ! यह वस्तुतत्त्व आप स्वयं आत्म- प्रत्यक्ष से जानते हैं या किसी हेतु प्रयुक्त अनुमान से अथवा किसी आगम के आधार से ?" Jain Educationa International सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र For Personal and Private Use Only २२१ www.jainelibrary.org

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