Book Title: Sachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Author(s): Purushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti

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Page 246
________________ भगवान के उत्तरों से रोह अनगार परम संतुष्ट हुआ। गौतम ने पूछा-"भगवन् ! लोकस्थिति कितने प्रकार की कही है?' भगवान-“गौतम ! लोकस्थिति आठ प्रकार की कही है, जैसे-(१) आकाश पर हवा प्रतिष्ठित है, (२) हवा पर समुद्र, (३) समुद्र पर पृथ्वी, (४) पृथ्वी पर त्रस-स्थावर प्राणी, (५) (नस-स्थावर) जीवों पर अजीव (जीव शरीर), (६) कर्मों पर जीव प्रतिष्ठित हैं, (७) अजीव-जीव संगृहीत हैं, और (८) जीव-कर्म संगृहीत हैं।" गौतम-“भगवन् ! यह कैसे? आकाश पर हवा और हवा पर पृथ्वी आदि कैसे प्रतिष्ठित हो सकती है ?" भगवान-“गौतम ! जैसे कोई पुरुष मशक को हवा से पूर्ण भरकर उसका मुँह बंद कर दे, फिर उसको बीच में से मजबूत बाँधकर मुँह पर की गाँठ खोल हवा निकालकर उसमें पानी भर दे और फिर मुँह पर तानकर गाँठ दे दे और बाद में बीच की गाँठ छोड़ दे तो वह पानी नीचे की हवा पर ठहरेगा?" गौतम-"हाँ भगवन् ! वह पानी हवा के ऊपर ठहरेगा।" भगवान-'इसी तरह आकाश के ऊपर हवा और हवा के ऊपर पृथ्वी आदि रहते हैं। गौतम ! कोई आदमी मशक को हवा से भरकर अपनी कमर में बाँधे हुए अथाह जल को अवगाहन करे तो वह ऊपर ठहरेगा या नहीं?" गौतम-“हाँ भगवन् ! वह मनुष्य ऊपर रहेगा।' भगवान-“इसी प्रकार आकाश पर हवा और हवा पर पृथ्वी आदि प्रतिष्ठित हैं।'५० तेईसवाँ वर्ष इस वर्ष भगवान ने वर्षावास राजगृह में ही किया। वर्षाकाल पूरा होते ही भगवान ने राजगृह से पश्चिमोत्तर प्रदेश की ओर विहार किया और गाँवों में धर्म-प्रचार करते हुए कयंगला नगरी के छत्रपलास चैत्य में पधारे। कयंगला-निवासी तथा आसपास के गाँवों के अनेक भाविक लोग भगवान का आगमन सुनकर छत्रपलास में एकत्र हुए और वन्दन-नमस्कारपूर्वक धर्म-श्रवण कर अपने-अपने स्थान पर गये। स्कन्दक परिव्राजक के प्रश्न-समाधान उस समय श्रावस्ती के समीप एक मठ में गर्दभालि शिष्य कात्यायन गोत्रीय स्कन्दक नामक परिव्राजक रहता था। वह वेद, वेदांग, पुराण आदि वैदिक साहित्य का पारंगत विद्वान् तथा तत्त्वान्वेषी और जिज्ञासु तपस्वी था। जिस समय भगवान छत्रपलास में पधारे स्कन्दक कार्यवश श्रावस्ती आया हुआ था। वहाँ उसे 'पिंगलक' नामक कात्यायन गोत्रीय एक निर्ग्रन्थ श्रमण मिले। श्रमण पिंगलक ने स्कन्दक से पूछा-“मागध ! इस लोक का अन्त है या नहीं? जीव का अन्त है या नहीं ? सिद्धि का अन्त है या नहीं? सिद्धों का अन्त है या नहीं? और हे मागध ! किस मरण से मरता हुआ जीव बढ़ता और घटता है ?'' पाँचों प्रश्न एक साथ पूछकर निर्ग्रन्थ ने उत्तर की प्रतीक्षा की। स्कन्दक कात्यायन ने पाँचों प्रश्नों को अच्छी तरह सुना और उन पर खूब विचार भी किया परन्तु उनका उत्तर नहीं दे सका। उल्टा वह ज्यों-ज्यों उन पर विचार करता जाता शंकाकुल हो विशेष उलझता जाता। पिंगलक ने दूसरी और तीसरी बार भी उन प्रश्नों की आवृत्ति की, पर स्कन्दक की तरफ से कोई उत्तर नहीं मिला। ठीक इसी समय भगवान महावीर के छत्रपलास चैत्य में पधारने के समाचार श्रावस्ती में पहुँचे। चौक, बाजार, मुहल्ले और गलियों में उनकी चर्चा होने लगी और क्षणभर में श्रावस्ती की आस्तिक प्रजा से छत्रपलास के मार्ग पट गये। __नगरवासियों की यह चर्चा और प्रवृत्ति कात्यायन स्कन्दक ने देखी और वे भी सावधान हो गये। ज्ञानी महावीर के पास जाकर वन्दन-नमस्कार और धर्मचर्चा करने के विचार से वे श्रावस्ती से जल्दी लौटकर अपने आश्रम में आये | १८८ १८८ सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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