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केशी - "जिसमें तुम बैठे हो वह नाव समुद्र में चारों ओर घसीटी जा रही है। गौतम ! इस तरह तुम इस अगाध समुद्र को कैसे पार कर सकोगे ?"
गौतम - "सछिद्र नाव समुद्र पार नहीं कर सकती, पर जो नाव निश्छिद्र होती है वह समुद्र पार कर सकती है। मैं निश्छिद्र नाव में बैठा हूँ अतः समुद्र को पार करूँगा।"
केशी - "गौतम ! वह नाव कौन-सी है ?"
गौतम - "शरीर नाव है, जीव नाविक और यह संसार समुद्र जिसे महर्षि लोग पार करते हैं।"
केशी - "गौतम ! बहुत से प्राणधारी जो घोर अंधकार में रहते हैं उनके लिये लोक में प्रकाश कौन करेगा ?" गौतम - "सम्पूर्ण लोक को प्रकाशित करने वाला निर्मल सूर्य अखिल लोक में जीवों को प्रकाश देगा।"
केशी - "गौतम ! वह सूर्य कौन है ?"
गौतम - "जिनके जन्म-मरण टल गये हैं ऐसे सर्वज्ञ 'जिन' ही सूर्य हैं। वे उदय पाकर सम्पूर्ण लोक में जीवों को प्रकाश देते हैं।"
केशी - "हे गौतम! शारीरिक और मानसिक दुःखों से पीड़ित प्राणधारियों के लिए निर्बाध और निरुपद्रव कौन-सा स्थान है ?"
गौतम - "लोक के अग्र भाग में ऐसा स्थान है जो निश्चल और दुरारोह है । वहाँ जरा-मरण और व्याधि- वेदना कुछ भी नहीं है ।"
केशी - "गौतम ! वह स्थान कौन-सा है ?"
गौतम-‘“निर्वाण, अनाबाध, सिद्धि और लोकाग्र इत्यादि नामों से वह पहचाना जाता है । वह कल्याणकारक, निरुपद्रव और निर्बाध है। इसकी स्थिति शाश्वत और चढ़ाव दुरारोह है । संसार-प्रवाह को तैरकर जो महर्षि इस स्था को प्राप्त होते हैं वे सब शोकों से परे हो जाते हैं।".
केशी - "गौतम ! तुम्हारी बुद्धि को साधुवाद ! मेरे सभी संशय दूर हो गये । सर्वसूत्रों के महासागर गौतम ! तुम्हें
नमस्कार
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इस प्रकार अपने संदेह दूर होते ही केशीकुमार श्रमण ने गौतम को सिर झुकाकर अभिवादन किया और वहीं भगवान महावीर के मार्गानुगत पञ्चमहाव्रतिक धर्म को स्वीकार किया ।
केशी और गौतम के इस सम्मेलन से वहाँ श्रुतज्ञान और संयम धर्म का बड़ा उत्कर्ष हुआ और अनेक महत्त्वपूर्ण तत्त्वों का निर्णय हुआ। वहाँ एकत्रित सभा भी संतुष्ट होकर सन्मार्ग के स्वीकारने में तत्पर हुई । ६५
भगवान महावीर श्रावस्ती पधारे और कुछ समय वहाँ ठहरने के उपरान्त पाञ्चाल की तरफ विहार करके अहिच्छत्रा पधारे। वहाँ प्रचार करने के बाद कुरु जनपद की ओर उन्होंने विहार किया और हस्तिनापुर पहुँचकर नगर के बाहर सहस्राम्रवन नामक उद्यान में ठहरे।
शिव राजर्षि द्वारा सम्मान
हस्तिनापुर के राजा शिव सुखी, संतोषी और धर्म प्रेमी थे। एक दिन मध्य रात्रि में शिव की नींद टूट गई। वे राजकाज की चिन्ता करते-करते अपनी वर्तमान स्थिति और उसके कारणों की मीमांसा में उतर पड़े । सोचने लगे'अहा ! मैं इस समय सब प्रकार से सुखी हूँ । पुत्र, पशु, राज्य, राष्ट्र, सेना, वाहन, कोष, स्त्री और धन-संपदा आदि सब बातों से मैं बढ़ रहा हूँ। यह सब मेरे पूर्वभव के शुभ कर्मों का फल है। धर्म का यह फल भोगते हुए मुझे भविष्य
सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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