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साध्वी चन्दना ने मृगावती से पूछा-"यहाँ तो साँप दिखाई नहीं देता।"
मृगावती ने झट से साँप को उठाया और दूसरी ओर फेंक दिया। चन्दना ने देखा, सचमुच साँप था। चन्दना ने पूछा-"क्या तूने इस गहन अंधकार में साँप को पकड़ा है ? क्या तुम्हें केवलज्ञान तो प्राप्त नहीं हो गया ?"
मृगावती ने कहा-“गुरुणी जी ! आपकी कृपा से मुझे केवलज्ञान प्राप्त हो गया है।"
उसी समय साध्वी चन्दनबाला सँभली। उसने चिंतन किया कि उसने मृगावती साध्वी की आशातना की है। केवली के कथन को असत्य ठहराया है। वह पश्चात्ताप में डूब गई। यही पश्चात्ताप साध्वी चन्दना के लिये वरदान सिद्ध हुआ।
इसी आत्म-चिंतन में डूबी चन्दना को भी केवलज्ञान-केवलदर्शन प्राप्त हो गया।
इस प्रकार एक रात्रि में शिष्या मृगावती और गुरुणी चन्दना ने केवलज्ञान प्राप्त किया। यही उनके जीवन का उद्देश्य था। अब उनका जन्म-मरण समाप्त हो चुका था। अब वे मोक्षगामिनी बन गई थीं। उपासना का फल
इसी प्रसंग में गणधर गौतम ने प्रभु महावीर से निम्न प्रश्न पूछे-- गणधर गौतम-"भगवन् ! श्रमण ब्राह्मण की पर्युपासना करने वाले को उसका फल क्या मिलता है ?" प्रभु महावीर-“उसकी पर्युपासना से सत्शास्त्र श्रवण करने को मिलता है।" गणधर गौतम-“श्रवण का फल क्या है ?" प्रभु महावीर-“सुनने से ज्ञान होता है।" गणधर गौतम-“जानने का फल क्या है ?" प्रभु महावीर-“जानने का फल विज्ञान है।" गणधर गौतम-"विज्ञान का फल क्या है ?" प्रभु महावीर-"विज्ञान का फल प्रत्याख्यान है।'' गणधर गौतम-“प्रभु ! प्रत्याख्यान का फल क्या होता है ?" प्रभु महावीर-"प्रत्याख्यान का फल संयम है। प्रत्याख्यान होने के पश्चात् सर्वस्व त्याग रूप संयम होता है।" गणधर गौतम-"प्रभु ! संयम का फल क्या है?" प्रभु महावीर-“संयम का फल आस्रव (रहितपना) है। आत्म-भाव में रमण करना है।" गणधर गौतम-'आस्रव-निरुंधन का फल क्या है ?" प्रभु महावीर-“उसका फल तप है।" गणधर गौतम-"तप का फल क्या है ?" प्रभु महावीर-“तप कर्मरूपी मैल को नष्ट करता है।" गणधर गौतम-“कर्मरूपी मैल नष्ट होने से किस फल की प्राप्ति होती है ?" प्रभु महावीर-“उससे अक्रियापन प्राप्त होता है।'' गणधर गौतम-“अक्रियापन से क्या प्राप्त होता है ?" प्रभु महावीर-“अक्रियापन का फल मोक्ष है।"
सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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