Book Title: Sachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Author(s): Purushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 211
________________ त्यों ही श्रेणिक ने उसे गोद में भर लिया। पर शालिभद्र गुलाब के फूल की तरह सुकोमल था। राजा के शरीर की गर्मी से उसके शरीर में पसीने छूटने लगे। राजा ने उसे व्याकुल देखकर अपने करीबी आसन पर बिठाया तब कहीं शालिभद्र को चैन आया। __ इस तरह भद्रा सेठानी के अतिथि सत्कार को स्वीकार करता राजा आनन्दित हुआ घर आया और शालिभद्र पुनः अपने महल की सातवीं मंजिल में पहुँचा। 'नाथ' शब्द के चिंतन से उसके मन में उथल-पुथल मची हुई थी कि मेरा भी कोई स्वामी है। ___ उस समय उस नगरी में धर्मघोष नाम के मुनि पधारे हुए थे। हजारों नागरिक सज-धजकर उनके दर्शन करने जा रहे थे। शालिभद्र ने सातवीं मंजिल पर बैठे-बैठे यह नजारा देखा। उसे कोई भव्य समारोह लगा। उसने अपने नौकरों से पता करवाया कि क्या मामला है ?" नौकरों ने वन में मुनि-आगमन की शुभ सूचना दी। अन्य लोगों की तरह वह भी मुनि धर्मघोष का प्रवचन सुनने चला गया।१३ इस प्रवचन से उसके सारे संशय मिट गये। नाथ-अनाथ का मर्म समझ में आ गया। उसके मन में वैराग्य का अंकुर पैदा हो गया था। घर आकर उसने अपने मन के भाव अपनी माता से कहे। भद्रा सेठानी, जो हर प्रकार से सुखी थी, समाचार को सुनकर उस पर जैसे कोई बिजली गिर पड़ी हो, ऐसी स्थिति हो गई। आखिर उसका पुत्र शालिभद्र ही उसके जीने का उद्देश्य था। फिर भी माता भद्रा ने स्वयं को सँभाला। भद्रा सेठानी व्यापारी थी। दीन-दुनियाँ उसने देखी थी। उसने अपने अनुभव के आधार पर शालिभद्र को परामर्श दिया-“अगर तुम साधु बनना चाहते हो, तो पहले इसका अभ्यास शुरू कर दो।" । जब पत्नियों ने यह समाचार सुना, तो वे भी दुःखी हुईं। आखिर वह उन ३२ पत्नियों का एक मात्र पति था। उसके बिना अपना जीवन उन्हें नीरस लगने लगा। 'शालिभद्र' अपनी धुन का पक्का था। इसी धुन पर सवार होकर शालिभद्र ने रोजाना एक-एक पत्नी का त्याग करना शुरू कर दिया। सारा परिवार इस त्याग से प्रभावित हुआ। यह बात रिश्तेदारों तक पहुंच गई। रिश्तेदारों से यह बात घर-घर में पहुंच गई। इसी नगर में धन्ना सेठ, जो शालिभद्र का जीजा था, वह भी सम्पन्नता से रहता था। जब शालिभद्र की बहिन सुभद्रा को अपने भाई शालिभद्र के साधु बनने की बात का पता चला तो उसे बहुत दुःख हुआ। शालिभद्र के रोजाना एक पत्नी त्याग का समाचार भी उसे मिल चुका था। इन सभी समाचारों के कारण सुभद्रा मानसिक रूप से दुःखी रहने लगी। धन्ना को उसकी पत्नियाँ स्नान करा रही थीं। सुभद्रा को उस समय धन्ना ने पूछा-"क्या बात है ? आजकल आप इतनी दुःखी रहती हैं ?" ___ "मेरा भाई साधु बनने जा रहा है। अभ्यास के तौर पर वह रोजाना एक पत्नी, एक शय्या का त्याग कर रहा है।" १४ –सुभद्रा ने उत्तर दिया। धन्ना सेठ ने कहा-“तुम्हारा भाई बहुत ही कायर है। यदि दीक्षा ही लेनी है तो फिर एक-एक पत्नी का त्याग क्यों करता है ? सभी को एक ही समय क्यों नहीं त्यागता?" धन्ना की बात सुभद्रा को तीर की भाँति चुभ गई। उसने उसी क्षण अपने पति को ताना मारा-"पतिदेव ! कहना बहुत सरल है, पर करना उतना ही कठिन है। आप क्या इसी तरह मुझे छोड़ सकते हैं ? अगर आप ऐसा करके दिखायें, तब आपको पता चले।" पत्नी का शब्द-बाण धन्ना के कलेजे में लग गया। वह उस समय स्नान की तैयारी में पत्नी से मालिश करवा रहा था। वह स्नान पीठ से सहसा उठ खड़ा हुआ। “लो, यह मैं चला; तुम सभी मेरे सामने से हट जाओ। मैंने तुम्हारा त्याग कर दिया है।' सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र _ _ १५३ १५३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328