Book Title: Sachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Author(s): Purushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti

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Page 210
________________ राजा श्रेणिक मंत्री व पुत्र अभयकुमार के साथ भद्रा के महल में पहुँचा। भद्रा ने राजा का स्वागत किया। आने का कारण पूछा। राजा ने कहा-"आपके पास जो सोलह कम्बल हैं उनमें से एक कम्बल रानी चेलना को चाहिये। सो कीमत लेकर एक कम्बल दे दो।" भद्रा ने प्रार्थना की-"महाराज ! आप कैसी बात करते हैं ? हम अपनी महारानी पर हजार कम्बल भी कुर्वान कर सकते हैं। पर अब समस्या यह आ गई है-मैंने उन कम्बलों के दो-दो टुकड़े कर अपनी बहुओं को दे दिये हैं, ताकि वह पाँव पोंछ सकें।" राजा हैरान था कि मैं तो एक कम्बल लेने में स्वयं को समर्थ नहीं पा रहा। यह है कि सोलह कम्बलों के इन्होंने टुकड़े कर दिये हैं।" फिर राजा ने सोचा-'महारानी का हठ तो पूर्ण करना ही है।' उन्होंने कहा- "आप हमें दो टुकड़े भेंट कर दें। हम उन्हें जोड़कर महारानी की इच्छा पूरी कर देंगे।" भद्रा ने दासियों से कहा-पता करो कि कोई रत्नकम्बल मिल सकता है।'' __ दासी के इंकार करने पर भद्रा सेठानी ने प्रार्थना की-“महाराज ! बहुतों ने तो इन कम्बलों को पाँव से पौंछकर फेंक दिया है।" अब रानी की इच्छा पूर्ण होनी असंभव है।" भद्रा ने राजा श्रेणिक को बताया-“राजन् ! यह धन वैभव आपका ही है। पर बात यह है कि मेरी बहुएँ देवदूष्य वस्त्र पहनती हैं, क्योंकि मेरे पति देवगति में हैं। वे प्रतिदिन ३३ पेटियों में आभूषण, वस्त्र भेजते हैं। रत्नकम्बल का स्पर्श मेरी वधुओं को कठोर लगा; इसलिए उन्होंने उन्हें फेंक दिया। इस कारण मैं आपको रत्नकम्बल देने में असमर्थ हूँ।" राजा श्रेणिक ने सुना तो गहरे असमंजस में पड़ गया। भद्रा ने राजा को अपने घर पधारने की प्रार्थना की जिसे श्रेणिक ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। राजा श्रेणिक भद्रा सेठानी के महल में पहुँचा। वह महल को देखकर दंग रह गया। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई इतना धनवान हमारी नगरी की शोभा को बढ़ा रहा है। भद्रा ने राजा को प्रणाम किया। फिर आदरपूर्वक अतिथि-कक्ष में ले आई। अतिथि-कक्ष क्या था ? वह तो इन्द्रसभा की तरह था। राजा श्रेणिक शालिभद्र से मिलना चाहता था। इसी बात को ध्यान में रखकर माता भद्रा ने कहा-“बेटा ! नीचे आओ। श्रेणिक आये हैं।" शालिभद्र आराम में मस्त था। उसने उपेक्षाभाव से कहा-“माता जी ! सारा व्यापार आप देखती हो। अब इस श्रेणिक में क्या खूबी है ? इसे किसी अच्छे गोदाम में रखवा दो।" शालिभद्र संसार से इतना अनभिज्ञ व भोगों में डूबा हुआ था कि वह अपने देश के राजा तक का नाम नहीं जानता था। माता ने पुनः आवाज लगाई-“बेटा ! नीचे आओ। हमारे स्वामी राजा श्रेणिक पधारे हैं। वह हमारे नाथ हैं। इन्हें प्रणाम करो।" अब शालिभद्र की समझ में सारी बात आ गई। उसने आज तक सभी पर आज्ञा चलाई थी। उसे यकीन नहीं आ रहा था कि हमारा भी कोई स्वामी है। शालिभद्र नीचे अतिथि-कक्ष में आया। उसने राजा श्रेणिक को प्रणाम किया। तब सभी ने भोजन किया। राजा श्रेणिक भद्रा सेठानी के अतिथि सत्कार से बहुत प्रभावित हुआ। श्रेणिक राजा ने उसके सुन्दर, सुडौल शरीर, गौर वर्ण और असीम लावण्य रूप को देखा। वह अवाक् रह गया। ऐसा रूप, लावण्य व कोमल शरीर उस राजा ने कम ही देखा था। ज्यों ही शालिभद्र प्रणाम करने हेतु निकट आया | १५२ - १५२ सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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