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सभी राजकुमारों ने ग्यारह अंगों का स्वाध्याय किया । तप द्वारा आत्मा को शुद्ध किया। इसी तरह सभी रानियों ने उत्कृष्ट तप द्वारा मोक्ष प्राप्त किया । ३८
संसार के इतिहास में एक ही परिवार से इतने राजकुमार, रानियों की दीक्षा का कम ही उदाहरण मिलता है । महलों में पले इन राजकुमार व रानियों का संसार के भोगों को त्यागकर साधु-साध्वी का जीवन ग्रहण करना प्रभु महावीर के वैराग्यमय उपदेशों का प्रभाव कहा जा सकता है।
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महासती रानी चेलना
एक बार प्रभु महावीर ने कहा था कि राजा चेटक की सभी पुत्रियाँ शील गुण से सम्पन्न हैं। राजा चेटक की सभी पुत्रियाँ उस समय के प्रसिद्ध राजाओं से विवाहित थीं ।
एक बार राजा श्रेणिक व रानी चेलना प्रभु महावीर के दर्शन को जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने एक तरुण मुनि को देखा जो कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यानस्थ थे । ठण्ड का मौसम था। रानी चेलना के मन पर उस मुनि के तप का बहुत प्रभाव पड़ा था। श्रद्धावश उसने नतमस्तक हो मुनि को प्रणाम किया। प्रभु महावीर के उपदेश सुनकर वह राजा सहित घर लौटी। पर उस मुनि का ध्यान मन में बना रहा।
रात्रि की ठण्ड बढ़ चुकी थी । राजा-रानी महलों में सुखपूर्वक सोये हुए थे। पर रानी के मन पर मुनि की कठोर तपस्या का महाप्रभाव था। अचानक आधी रात के समय लिहाफ से रानी का हाथ बाहर निकला। अर्ध-जाग्रत और अर्ध-सुप्त अवस्था में रानी बड़बड़ायी - "ऐसी ठण्ड में उनका जाने क्या हाल होगा ?"
इधर राजा श्रेणिक भी कुछ जाग रहे थे। उन्होंने रानी के मुँह से यह वाक्य सुना, तो संशय में पड़ गये। उन्होंने सोचा - " जरूर रानी किसी पर-पुरुष का चिन्तन कर रही है जो इस समय किसी मुसीबत में फँसा है।'
राजा श्रेणिक को रानी से ही नहीं, समस्त स्त्री - जाति से घृणा हो गई। सुबह हुई तो राजा ने अपने मंत्री अभय को बुलाकर आज्ञा दी - “मेरे अन्तःपुर में आग लगा दो । चेलना का कक्ष फूँक डालो। मैं अब अपने निवास को भस्म देखना चाहता हूँ।"
अभय मन से परेशान था पर वह राजाज्ञा के सामने क्या कर सकता था ? राजा की आज्ञा का पालन करना पड़ रहा था। राजा श्रेणिक आज्ञा प्रदान कर स्वयं प्रभु महावीर के दर्शन करने शीघ्रता से गुणशील चैत्य पहुँचा । अन्तर्यामी प्रभु महावीर से क्या छिपा था? उन्होंने भरी सभा में राजा श्रेणिक को सम्बोधित करते हुए सारी घटना ज्यों की त्यों कह डाली। फिर राजा श्रेणिक को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा- "मैंने एक बार कहा था कि राजा चेटक की सभी पुत्रियाँ पतिव्रता हैं, वह सत्य है । पर तूने धुएँ को बादल समझकर नादानी की है। चेलना तो ठण्ड में तप कर रहे मुनि की तपस्या का चिन्तन कर रही थी कि इस ठण्ड में वह मुनि कैसे खड़ा होगा, जबकि मेरा हाथ लिहाफ से निकलते मुझे ठण्डी लग रही है, तूने इस चिन्तन को पर-पुरुष चिन्तन समझा, जो तुम्हारी विकृत मनोदशा थी और इसी कारण तुम अभय को महलों में आग लगाने की आज्ञा प्रदान कर मेरे प्रवचन में आये हो। राजा ! तुम संशयग्रस्त हो । सत्य को जाने बिना शीलवती पत्नी पर संशय करते हो ।"
राजा श्रेणिक को अपनी भूल का अहसास हुआ। उसने प्रभु महावीर से कहा- "प्रभु ! आपका वचन सत्य है। मैं शीघ्रता से अभय को ऐसा अकार्य करने से रोकता हूँ ।"
राजा महलों की ओर बढ़ा। भयंकर लपटें उसके महलों को जला रही थीं। पास आकर उसने अभय से पूछा - "क्या तूने मेरी आज्ञा का पालन कर दिया ?"
अभय ने कहा- "हाँ पिताजी ! मैंने महलों को आग लगा दी ?"
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सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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