Book Title: Rushabh aur Mahavira
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ ऋषभ का अवतरण नहीं, यह गलत बात है । भगवान् की शक्ति दिखाई नहीं देती, शैतान की शक्ति हमारे सामने है। वह जब चाहे बिगाड़ कर सकता है । शैतान दुनिया में भरे पड़े हैं, पग-पग पर हैं। पर भगवान् कहीं दिखाई नहीं देता। तुम्हारा तर्क भी ठीक है, मेरा तर्क भी ठीक है। कैसे? बनाने में समय ज्यादा लगता है, बिगाड़ने में कुछ भी समय नहीं लगता। बुद्ध से एक व्यक्ति ने उपदेश देने की प्रार्थना की । उपदेश मांगने वाला व्यक्ति चोर था, डाकू था, बुरा आचरण करने वाला था। बुद्ध ने कहा- उपदेश बाद में दूंगा। पहले तुम सामने वाले पेड़ से पांच पत्तियां तोड़ लाओ। वह गया, पांच पत्तियां तोड़कर ले आया। उसे तोड़ने में एक मिनट भी नहीं लगा। बुद्ध ने कहा—इन पांच पत्तियों को फिर जोड़ आओ। वह बोला—यह काम संभव नहीं है । तोड़ना मेरे वश की बात थी पर जोड़ना मेरे वश की बात नहीं है। मैं तोड़ सकता हूं जोड़ नहीं सकता। बुद्ध ने कहा-यही संबोधि है । तोड़ो मत, जोड़ने में लगे रहो। विकास की प्रक्रिया विध्वंस का काम कोई भी कर सकता है पर निर्माण का काम कौन करता है? यह कहना यौक्तिक है—शैतान की शक्ति कम है, भगवान् की शक्ति ज्यादा है। निर्माण करने में समय ज्यादा लगता है। विध्वंस करने में समय बहुत कम लगता है। व्यक्ति ने कंकड़ फेंका और घड़ा फूट गया। उसे फोड़ने में एक मिनट भी नहीं लगा किन्तु उसी घड़े के निर्माण में कितने श्रम और शक्ति का नियोजन हुआ। निर्माण समय-सापेक्ष है। अपने जीवन के निर्माण में भी बहुत समय लगता है। ऋषभ को ऋषभ बनने में कितना समय लगा ! वे एक दिन में ही ऋषभ नहीं बन गए थे। उनके पूरे अतीत को पढ़ा जाए तो यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है। जैन साहित्य में पूर्वजन्म के वर्णन की सुन्दर विद्या उपलब्ध होती है। जैन साहित्य में सैंकड़ों-सैकड़ों व्यक्तियों के पूर्वजन्म बतलाए गए हैं। उससे विकास की पूरी प्रक्रिया ज्ञात होती है। व्यक्ति पहले कहां था और विकास करते-करते वह कहां तक पहुंच गया, इसे पूर्वजन्म की घटनाओं के आधार पर जाना जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति पहले साधारण स्थिति में होता है। वह साधारण स्थिति से अपनी यात्रा शुरू करता है। विकास की यह प्रक्रिया अनेक जन्म तक चलती रहती है। एक जन्म, दो जन्म, पांच जन्म, दस जन्म, बीस जन्म, तीस जन्म और जन्म जन्मान्तर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122