Book Title: Rushabh aur Mahavira
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 42
________________ धर्म तीर्थ का प्रवर्तन हिन्दुस्तान में दो परम्पराएं बहुत पुरानी हैं-श्रमण परंपरा और वैदिक परम्परा । कौन कितनी पुरानी है ? कौन पहले है और कौन बाद में ? यह आज भी अनुसंधान का विषय बना हुआ है। जो बहुत पुरानी होती है, वह अच्छी होती है और जो नई होती है, वह अच्छी नहीं होती, यह व्याप्ति ठीक नहीं है। एक नई परंपरा बहुत तेजस्वी और बहुत श्रेष्ठ हो सकती है। पुरानी परम्परा तेजस्वी और श्रेष्ठ नहीं भी हो सकती। पुराना होना या नया होना श्रेष्ठता का मापदण्ड नहीं है। फिर भी ऐतिहासिक दृष्टि से यह ज्ञातव्य अवश्य होता है कि पुराना कौन है और नया कौन? भगवान् ऋषभ : श्रमण परम्परा श्रमण परम्परा बहुत प्राचीन है, इसमें कोई संदेह नहीं है। ऐतिहासिक काल, प्रागैतिहासिक काल-ये अतीत को जानने के दो कोण हैं । इतिहास की सामग्रीपुरातत्त्व, भूखनन, सिक्के आदि-आदि के आधार पर इतिहासकाल माना जाता है । उससे जो भी अतीत है, वह प्राग्-ऐतिहासिक काल है। ___महावीर इतिहास पुरुष हैं, पार्श्वनाथ भी इतिहास पुरुष हैं । उससे आगे इतिहास की वह सामग्री प्राप्त नहीं है, जिसके द्वारा उसकी ऐतिहासिकता की कसौटी की जा सके। जैन धर्म का शेष सारा अतीत प्राग-ऐतिहासिक काल की सीमा में आता है। प्रश्न होता है—जैन धर्म का प्रवर्तन कब हुआ? क्या महावीर ने जैन धर्म का प्रवर्तन किया? तीर्थंकर आदिकर होता है। तीर्थकर किसी का अनुयायी नहीं होता। कोई तीर्थंकर किसी तीर्थकर का अनुयायी नहीं है । महावीर पार्श्व के अनुयायी नहीं हैं, पार्श्व ऋषभ के अनुयायी नहीं हैं। सब आदिकर हैं। प्रश्न हुआ—प्रत्येक तीर्थंकर आदिकर होता है तो तीर्थकर चौबीस क्यों? चौबीस तीर्थंकरों की एक श्रृंखला क्यों? ऐसा क्यों माना गया? यह आज भी अनुसंधान का विषय है। ____ सब स्वतंत्र हैं, आदिकर हैं। इस दृष्टि से महावीर भी प्रवर्तक हैं। किन्तु जैन धर्म का सबसे पहले प्रवर्तन किसने किया? इस प्रश्न की खोज में हम यात्रा करते-करते उस युग में पहुंच जाते हैं जिस युग में युगलों का युग समाप्त होता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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