Book Title: Rushabh aur Mahavira
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 48
________________ धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करना आवश्यक है । आज यह बहुत वैज्ञानिक बात बन चुकी है— दो प्रतिपक्षों के बिना, दो विरोधी युगलों के बिना विश्व चल नहीं सकता। विज्ञान का विद्यार्थी, विज्ञान के साहित्य को पढ़ने वाला जानता है— कोरा मेटर हो नहीं सकता । अगर मेटर है तो एण्टीमेटर भी है । प्रतिपक्ष के बिना दुनिया का काम नहीं चलता । आत्मा मेटर से परे है लोकतंत्र की कल्पना करने वालों ने बहुत बड़ी सच्चाई को खोजा । लोकतंत्र में पक्ष के साथ विपक्ष का होना जरूरी है। अगर विरोधी दल नहीं है तो लोकतंत्र ठीक नहीं चल सकता । अनेकान्त का सिद्धान्त है— विरोधी युगल का होना अनिवार्य है । उसके बिना व्यवस्था सम्यक् संपादित नहीं हो सकती । आज विपक्ष का काम पक्ष को कोसना मात्र रह गया। वे एक दूसरे के पूरक नहीं हैं। इसलिए वे समस्या को मिटाने में नहीं, उसे उलझाने में, उसका लाभ उठाने में लगे हुए हैं। धर्मास्तिकाय नहीं है तो अधर्मास्तिकाय नहीं हो सकता । धर्मास्तिकाय को अपने अस्तित्व के लिए अधर्मास्तिकाय को स्वीकार करना जरूरी है। धर्मास्तिकाय को अपने अस्तित्व के लिए अधर्मास्तिकाय के अस्तित्व को स्वीकार करना जरूरी है। लोक है तो अलोक का होना जरूरी है । अनेकान्त का यह वैज्ञानिक सिद्धान्त है, जो व्यवहार में, लोकतन्त्र में, आया पर क्रियान्वित नहीं हो सका। पूरकता के स्थान पर झूठा, विरोध करना, एक-दूसरे को गालियां देना, एक-दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयत्न करना ही शेष रह गया । यह एक विडम्बना है । अनेकान्त की सार्थक अभिव्यक्ति है— पदार्थ और आत्मा की स्वीकृति । पदार्थ का सिद्धान्त मेटर का सिद्धान्त है । आत्मा मेटर से परे है । ४७ समाज : असमाज ऋषभ ने सबसे पहले आत्मा का आयाम खोला। उन्होंने कहां-जहां आत्मा है, वहां समता की बात स्वतः फलित होगी । इस तथ्य को स्वीकार किए बिना आत्मा की बात संभव नहीं बनती। ऋषभ की इस उद्घोषणा से मानव समाज को नया प्रकाश मिला । पदार्थ से अधिक मूल्य त्याग का हो गया । पदार्थ का मार्ग समाज का मार्ग है । धर्म का मार्ग, त्याग का मार्ग, असमाज का मार्ग है । वही समाज अच्छा चल सकता है, जिसमें असमाज होता है। जिस समाज में असमाज नहीं होता, वह समाज अच्छा नहीं चल सकता । इसका अर्थ है - कोरा भोग चल नहीं सकता, कोरी हिंसा और कोरा झूठ चल नहीं सकता। भोग त्याग के सहारे चल रहा है। प्रत्येक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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