Book Title: Rushabh aur Mahavira
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 85
________________ ऋषभ और महावीर समाधिमरण का प्रयोग मूर्छा पर प्रहार करना समाधिमरण का एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग है। यदि हम महावीर के समाधिमरण के दर्शन को अनेक पहलुओं से देखें तो जीवन में नया आलोक मिलेगा। जिसने महावीर के इस दर्शन को समझा है, उसे कायोत्सर्ग का प्रयोग मिलेगा। महावीर के इस दर्शन को समझने वाला कायोत्सर्ग को अधिक से अधिक समझने का प्रयत्न करेगा। कायोत्सर्ग का अर्थ है मृत्यु से साक्षात्कार । जीवन से साक्षात्कार करना जितना जरूरी है उतना ही जरूरी है मृत्यु से साक्षात्कार करना। जिसने मृत्यु का साक्षात्कार किया है वही अच्छा जीवन जी सकता है। .हम इस भाषा में बोलते हैं—महावीर ने मरने की कला सिखाई। वस्तुत: महावीर ने जीने और मरने की कला को बांटकर नहीं सिखाया। महावीर की भाषा में जो जीने की कला है वही मृत्यु की कला है । जो मृत्यु की कला है, वही जीवन की कला है। मरण का वर्गीकरण ___महावीर ने मृत्यु का एक वर्गीकरण प्रस्तुत किया-पंडित मरण, बाल-मरण और बाल-पंडित मरण । पंडित मरण की तुलना सात्त्विक गुण से की जा सकती है। बाल-पंडित मरण की तुलना रजोगुण से और बाल-मरण की तुलना तमोगण से की जा सकती है। महावीर ने कहां-व्यक्ति बाल-मरण से न मरे । कोई बच्चा जन्मता है तो वह बाल अवस्था में ही जन्मता है किंतु वह बाल-मरण-असमाधिमरण से न मरे । दसरी भाषा में कहें तो अकाम-मरण से मरना बाल-मरण है। सकाम-मरण पंडित-मरण है। यदि महावीर का यह दर्शन समग्रता से समझ में आए तो उनका पूरा दर्शन समझ में आ जाएगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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