Book Title: Rushabh aur Mahavira
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 106
________________ संकल्प की धुनी पर तपा गया तप व्यक्ति शरीर बल से कम जीता है, संकल्प बल से अधिक जीता है। संकल्प बल के बिना आदमी बहुत कष्टों को सहन नहीं कर सकता। एक पतला- दुबला आदमी भी भयंकर कष्टों को सहन कर सकता है और एक मजबूत शरीर वाला आदमी भी कष्टों को सह नहीं सकता, घुटने टेक देता है । शरीर की शक्ति है किन्तु उससे भी बड़ी शक्ति है मन की शक्ति, संकल्प की शक्ति । हम वर्तमान को देखें । महात्मा गांधी ने कम कष्ट नहीं सहे । वे शरीर से दुबले-पतले थे किन्तु उनका मनोबल बहुत दृढ़ था । जिस व्यक्ति ने अपनी संकल्पशक्ति को जगाया है, वह भयंकर से भयंकर तूफान का सामना कर सकता है। जिसका संकल्प बल जागृत नहीं होता, वह सामान्य कष्टों से भी घबरा जाता है । ऐसा लगता है— महावीर और संकल्प बल दो नहीं थे । संकल्प जन्म से ही उनका साथी बन गया था । संकल्प और व्रत में कोई दूरी नहीं है। जिसमें संकल्प शक्ति नहीं है, वह व्रती नहीं बन सकता। जो व्रती बनता है, उसकी संकल्प शक्ति बढ़ी हुई होती है । व्रत के साथ संकल्प शक्ति नहीं है तो व्रत कितना निभेगा ! संकल्प शक्ति के अभाव में व्रत को निभाया नहीं जा सकता। वह बार-बार टूट जाता है । संकल्प का बल ही व्रत को बचाता है । नंदीवर्धन का प्रस्ताव : महावीर का संकल्प भगवान् महावीर ने दीक्षा का संकल्प अभिव्यक्त किया । नंदीवर्धन ने कहाकुमार ! माता-पिता छोड़कर चले गए और तुम अभी दीक्षा ले रहे हो, यह उचित नहीं है । सारा राज्य उनके शोक में डूबा हुआ है । शोक कितने दिन चलेगा ? 1 दो वर्ष तक राजकीय शोक रहेगा । दो वर्ष तक मुझे घर पर रहना पड़ेगा ? यह मेरे लिए बहुत कठिन है । जिस व्यक्ति की आत्मा जाग जाती है, उसका घर में रहना मुश्किल हो जाता नंदीवर्धन ने प्रेमार्द्र स्वर में कहा- एक ओर माता-पिता का वियोग है, दूसरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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