Book Title: Rushabh aur Mahavira
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 112
________________ संकल्प की धुनी पर तपा गया तप सम्भव बनता है जब व्यक्ति की संकल्प शक्ति जाग जाए । महावीर उस मार्ग पर जा रहे थे जिस पर चण्डकौशिक सर्प का निवास था । चरवाहों ने कहा- आप इस मार्ग पर न जाएं। यह मार्ग बहुत खतरनाक है। किन्तु महावीर नहीं माने । वे उसी मार्ग पर चलते रहे । चलने के साथ एक संकल्प जुड़ा हुआ था । संकल्प के साथ-साथ समता और मैत्री का प्रयोग जुड़ा हुआ था। महावीर अपने इस प्रयोग में सफल बने, चण्डकौशिक का जीवन बदल गया । संकल्प और हठ जो आदमी अपने संकल्प पर अडिग रहता है, उसे हठी भी कहा जा सकता है । संकल्प और हठ कुछ सीमा तक एक ही हो जाते हैं। जिसमें हठ नहीं होता, वह शायद कोई काम का भी नहीं होता । हठ का होना जरूरी है, अपनी बात पर अड़ना भी जरूरी है । जो आदमी कहीं टिकना नहीं जानता, खड़ा होना नहीं जानता, वह अपने जीवन में कोई सार्थक काम नहीं कर पाता । लचीला होने का एक अवकाश होता है, एक क्षण होता है पर जिसमें अड़ने या दृढ़ रहने की शक्ति नहीं है, वह बहुत विकास नहीं कर पाता । महावीर का संकल्प : वर्तमान नियम भगवान् महावीर के संदर्भ में अबहुबाई शब्द का प्रयोग बहुत हुआ है । भगवान् महावीर बहुत कम बोलते थे। उनका संकल्प था- मुझे ज्यादा नहीं बोलना है । अनावश्यक बोलना ही नहीं है और आवश्यकता होने पर भी बहुत कम बोलना है I उन्होंने खान-पान में भी संकल्प का प्रयोग किया। उन्होंने संकल्प किया- मुझे न भोजन करना है, न पानी पीना है । यह संकल्प एक दिन नहीं, एक मास नहीं, छः महीने तक चला। आज यह बात असंभव लग सकती है। आधुनिक चिकित्सा नियमों के अनुसार यह संभव नहीं है कि कोई व्यक्ति छ: महीने तक न खाए, न पिए और जिंदा रह जाए । महावीर का संकल्प आधुनिक विज्ञान के इन नियमों से भी महान् था । उन्होंने संकल्प किया— जो मिले, वह खाना है। ऐसा नहीं है कि भगवान् महावीर स्वादिष्ट भोजन नहीं लेते थे । वे स्वादिष्ट भोजन भी लेते थे 1 1 संकल्प अचिकित्सा का १११ भगवान् महावीर भिक्षा के लिए गए। वे जिस घर में भिक्षा के लिए गए, उस घर में खाना नहीं बना था। घर की दासी ने कहा— भंते ! आप बहुत जल्दी पधार गए । रसोई बनी नहीं है। केवल बासी घयावल है। मैं उन्हें बाहर डालने जा रहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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