Book Title: Rushabh aur Mahavira
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 116
________________ वर्षमान : प्रेक्षा के प्रयोग ११५ काम मत लो, आंख से काम मत लो, इन्द्रियों से काम मत लो। भगवान महावीर ने ध्यान के अनेक प्रयोग किए। कहा गया—सद्दरूवेसु अमुच्छिए झाति–महावीर शब्द और रूप के प्रति अमूर्छित होकर ध्यान करते । इसका अर्थ है-सुनो, पर कान से मत सुनो। देखो, पर आंख से मत देखो। भीतर की आवाज सुनो, भीतर की आंख से देखो। बाहर की आंख को बंद कर लेना, बाहर के कान को बंद कर लेना, भीतर की आंख और कान को खोल देना, यह है प्रतिसंलीनता का रूप । प्रतिसंलीनता का अर्थ है-अपने आप में लीन हो जाना । जब जयाचार्य लम्बे समय तक ध्यान करते तब वे कानों में ऐसी चीज डाल लेते, जिससे बाहर की आवाज सुनाई न दे। अनेक बड़े-बड़े साधकों ने यह प्रयोग किया है। जो व्यक्ति बाहर की आवाज को सुनना बन्द कर देता है, भीतर की आवाज को सुनना शुरू कर देता है, उसके भीतर से आवाज फूट पड़ती है। हम जितने बाहर से भीतर की ओर जाएंगे, भीतर की आंख और कान खुल जाएंगे। हम जितने बाहर रहेंगे, भीतर के कान और आंख बंद होते चले जाएंगे। अनिमेषप्रेक्षा महावीर की ध्यान-पद्धति बहुत विचित्र थी। वह तीन भागों में बंटी हुई थी। महावीर ऊर्ध्वलोक का ध्यान करते , तिर्यग्लोक का ध्यान करते, अधोलोक का ध्यान करते । ऊर्ध्वलोक ध्यान का एक रूप है-आकाश दर्शन । जब महावीर तिर्यग् स्थान पर दृष्टि टिका देते। वे खुली आंखों से ध्यान करते, लम्बे समय तक ध्यान करते । वह ध्यान का रूप था अनिमेषप्रेक्षा। वे निर्धारित भाग को खुली आंखों से देखते रहते, खुली आंखों से देखते-देखते उनकी आंखों में एक बल पैदा हो जाता। उस स्थिति में उन्हें देखकर बच्चे चिल्ला उठते । एक बालक ने देखा-कैसी आंखें है ! बड़ी विचित्र आंखें हैं ! वह दूसरे बालक से कहता-देखो ! कैसा व्यक्ति है, कैसी आंखें हैं, आंखों में कितनी लालिमा है। बच्चे महावीर को देखकर डर जाते। अनिमेषप्रेक्षा करते-करते उनकी ऐसी स्थिति बन जाती। अनिमेषप्रेक्षा ध्यान-साधना का एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग है । जाति-स्मृति, सम्मोहन, दूर-दृष्टि, अन्तर्दृष्टि-इन सबके लिए अनिमेषप्रेक्षा एक अनिवार्य प्रयोग है। इस प्रयोग के द्वारा गहरी एकाग्रता सधती है। जिन ध्यान पद्धतियों में केवल त्राटक के प्रयोग को ही प्रधानता दी गई है, उनमें मुख्यत: यही प्रयोग चलता है । वास्तव में यह एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग है। भगवान महावीर बहुत लम्बे समय तक अनिमेषप्रेक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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