Book Title: Rushabh aur Mahavira
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 120
________________ वर्धमान : प्रेक्षा के प्रयोग ११९ जहां जहां कान के साथ मन जुड़ा, संवेदना जुड़ी, सुनना केवल सुनना नहीं रहा। उसमें संवेदन मुख्य बन जाता है, मूर्छा प्रधान हो जाती है और सुनना गौण हो जाता है। जहां केवल इन्द्रियों से काम लिया जाता है, उसके साथ मन और संवेदन नहीं जुड़ता वहां सुनना मुख्य हो जाता है, संवेदन और मूर्छा गौण बन जाते हैं। यही ध्यान का सबसे बड़ा सूत्र है। भगवान् महावीर की ध्यान पद्धति का, प्रेक्षाध्यान का इस संदर्भ में ही सम्यक् मूल्यांकन और अवबोध प्राप्त हो सकता है। भगवान् महावीर ने जो प्रयोग किए, वे जिन प्रयोगों से गुजरे, उनकी साधना के जो आधार सूत्र थे, वे आज प्रेक्षाध्यान पद्धति के महत्त्वपूर्ण आधार बने हुए हैं। उसकी साधना करने वाला महावीर की ध्यान पद्धति का साक्षात्कार कर सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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