Book Title: Rushabh aur Mahavira
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 104
________________ वर्धमान : परीषहों के घेरे में १०३ क्या आपको पता नहीं चला? मुझे पता नहीं चला। क्या जहर नहीं चढ़ा। नहीं ! मैं अपनी आत्मा में था। शरीर में क्या हो रहा था, उसका मुझे पता ही नहीं चला। जब व्यक्ति समाधि की मुद्रा में, ध्यान की गहराई में, चला जाता है तब उस पर जहर का कोई असर नहीं होता। उस पर न वर्षा का असर होता है और न धूप का असर होता है। विज्ञान के प्रयत्न भगवान् महावीर शरीर में रहते हुए भी विदेह थे। हम लोग शरीर की वर्तमान अवस्था से घबराते हैं। आदमी अपनी-अपनी भूमिका को दूसरों पर लादना जानता है किन्तु वह यह नहीं सोचता कि मेरी भूमिका क्या है ? महावीर जिस भूमिका में थे, उनमें उन्हें कष्ट नहीं था। यदि कष्ट होता तो वे टिक नहीं पाते । हमारे भीतर बहुत रहस्य और नियम छिपे हुए हैं। हम उन्हें समझ नहीं पा रहे हैं। आज के पीड़ा अनुसंधान वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक कह रहे हैं हम मानसिक दशा को बदलकर पीड़ा को बिल्कुल समाप्त कर सकते हैं। उनका विश्वास है लोगों को ऐसा मानसिक प्रशिक्षण देंगे, जिसके द्वारा वे अपनी पीड़ा पर नियंत्रण करना सीख जाएंगे। ऐसी स्थिति में न अस्पताल जाने की जरूरत पड़ेगी, न दवा लेने की जरूरत रहेगी। क्या ये विधियां हमें डॉक्टर सिखाएंगे? यह कार्य धर्म का है या डॉक्टरों का है? यह अध्यात्म के लोगों का कार्य है कि वे ऐसी विधियां सिखाएं, जिससे पीड़ा को समभाव से सहा जा सके। कष्टमुक्ति का मार्ग : भक्तिवाद कष्टानुभूति में कमी लाने का एक महत्त्वपूर्ण उपाय है-भक्तिवाद । धर्म के क्षेत्र में भक्तिवाद का बहुत महत्त्व है। एक व्यक्ति पढ़ा-लिखा है, विद्वान् है, तार्किक है किन्तु उसमें भक्ति का रस नहीं है तो वह बहुत पीड़ा भोगेगा । पीड़ा की अनुभूति में ज्ञान काम नहीं आता। उसे भक्तिवाद से ही कम किया जा सकता है। वह एक ऐसा आलम्बन है, जो कष्ट की अनुभूति को कम कर देता है। आलंबन के सहारे व्यक्ति सब कुछ सह लेता है। आस्था और श्रद्धा के सहारे बड़े-बड़े कष्ट अकिंचित्कर बन जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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