Book Title: Rushabh aur Mahavira
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 107
________________ ऋषभ और महावीर ओर तुम छोड़कर जा रहे हो, यह अच्छा नहीं होगा। मेरे लिए बहुत समस्याएं पैदा हो जाएंगी। ___ महावीर ने संकल्प की भाषा में कहा-मैं रह सकता हूं किंतु अपनी शर्तों के साथ । मेरा संकल्प है—मैं जब तक घर में रहूंगा तब तक रात्रि भोजन नहीं करूंगा, सजीव भोजन नहीं करूंगा, ब्रह्मचारी रहूंगा, एकान्त में रहूंगा, शरीर की सुश्रूषा नहीं करूंगा। यदि आप इन शर्तों को स्वीकार करें तो दो वर्ष और रुक सकता हूं। __नंदीवर्धन नहीं चाहते थे- राजकुमार वर्धमान इस रूप में राजमहल में रहे किंतु उन्हें महावीर के संकल्प के सामने झुकना पड़ा। संकल्पों की श्रृंखला ___ दो वर्ष बीते। संकल्प को नया आयाम मिला। महावीर ने मुनिव्रत स्वीकार करते हुए संकल्प किया-सव्वं में पावकम्मं अकरणिज्जं-आज से पाप कर्म मेरे लिए अकरणीय है। संकल्प की यह यात्रा आगे बढ़ी। महावीर वहां से प्रस्थान कर एक आश्रम में ठहरे। आश्रम में लम्बे समय तक प्रवास किया। एक दिन कुलपति के पास शिकायत आई—आपने किस व्यक्ति को आश्रम में रखा है । वह बिल्कुल लापरवाह और उदासीन है। वह अपनी झोंपड़ी की सुरक्षा भी नहीं रख सकता। गायें आती हैं और झोंपड़ी को चर जाती है। वह देखभाल नहीं करता है। कुलपति ने महावीर से कहा- राजकुमार वर्धमान ! आप संन्यासी बन गए हैं। कम से कम अपने घर की रखवाली कीजिए। एक चिड़ियां भी अपने घोंसले की रखवाली करती है। आप बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रहे हैं, यह अच्छी बात नहीं है । आप राजकुमार रहे हैं । आपको अधिक जागरूक रहना चाहिए । कुलपति यह कहकर चला गया। महावीर ने सोचा-मैं किसके प्रति जागरूक रहूं? मेरे लिए यह संभव नहीं है। महावीर ने वहां से प्रस्थान कर दिया। उन्होंने संकल्प किया-जहां भी अप्रीतिकर स्थान है वहां मैं नहीं रहूंगा। जहां मेरे रहने से दूसरों के मन में अप्रीति पैदा हो, वहां न रहने का संकल्प करता हूं। उन्होंने और भी अनेक संकल्प किए• मैं हाथ में भोजन करूंगा। • मैं गृहस्थ का अभिवादन नहीं करूंगा। • प्राय: मौन रहूंगा। • प्रात: ध्यान में लीन रहूंगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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