Book Title: Rushabh aur Mahavira
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 83
________________ ८२ ऋषभ और महावीर निष्पत्ति के आधार पर व्यक्तित्व का मूल्यांकन होता है। निष्पत्ति को सुखद बनाने के लिए सघन प्रयत्न की जरूरत होती है। दुनिया निष्पत्ति चाहती है, परिणाम चाहती है। वह उसी के आधार पर व्यक्ति का अंकन करती है। मृत्यु एक निष्पत्ति है दो मल्ल लड़ रहे थे। एक मल्ल जीत गया और दूसरा हार गया। जो मल्ल जीता था, लोग उसे धन्यवाद देने के लिए दौड़ पड़े। जो हार गया, उसे कोसने लगे। व्यक्ति जीत और हार को देखता है। उसे इससे मतलब नहीं होता कि हारने वाला कितने पुरुषार्थ से लड़ा, कैसे लड़ा। उसके सामने जीत और हार मुख्य होती है। शेष सारे पहलू उसके नीचे दब जाते हैं। जीतना और हारना एक निष्पत्ति है । निष्पत्ति का क्षण बहुत मूल्यवान क्षण होता है। यह माना जाता है—जिस व्यक्ति का अन्तिम समय अच्छा बीतता है, वह जीवन की बाजी जीत जाता है। जिस व्यक्ति का अन्तिम समय अच्छा नहीं बीतता, उसके लिए कहा जाता है—वह जीवन की बाजी हार गया। निष्पत्ति के क्षण की मूल्यवत्ता इससे स्पष्ट हो जाती है। मृत्यु का कोई निश्चित समय नहीं है इसलिए समाधिमरण के लिए प्रतिक्षण जागरूक रहना होता है । मृत्यु को देखें ____ मृत्यु दर्शन का एक पहलू है—मौत को देखो। जिसने मौत को देखा, वह बुराई से बच गया। आचारांग का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है-माराभिसंकी मरणा पमुच्चति—जो मृत्यु से आशंकित रहता है, वह मौत से मुक्त हो जाता है। ___हम दिल्ली में एक उद्योगपति की कोठी में ठहरे हुए थे। उस उद्योगपति का लड़का बहुत समझदार था। उसने कहा-महाराज ! हम लोग इतना काम कर रहे हैं, इतना धन कमा रहे है। बड़े-बड़े उद्योग और कारखाने चला रहे हैं। हमारे घर में धन का विशाल संचय है। अभी हम एक और बड़ा कारखाना प्रारम्भ करने जा रहे हैं। उसमें करोड़ों रुपए लग चुके हैं। मेरे मन में बार-बार एक प्रश्न उभरता है---आखिर हम यह सब क्यों कर रहे हैं ? किस लिए कर रहे हैं ? इसकी परिणति क्या है ? हमें इन सबसे आखिर क्या मिलेगा? यहां आकर चिंतन रुक जाता है, थम जाता है। हमें एक दिन इस दुनिया से चले जाना है। हम क्यों ऐसे गोरखधंधों में फंसे हुए हैं ? हमारा भविष्य क्या हैं? चिंतन हमें अनेक बार व्यथित कर देता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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