Book Title: Rushabh aur Mahavira
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 82
________________ मृत्यु का दर्शन : समाधिमरण समाधिमरण का एक संदर्भ है-अतीत के जीवन की आलोचना । अतीत में कए हुए सभी प्रकार के अकरणीय कृत्वों का प्रायश्चित समाधिमरण की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रस्थान बन जाता है। अतीत की आलोचना से स्वयं को विशुद्धि बनाकर व्यक्ति क्षमापना करता है । वह प्राणी मात्र से अपने द्वारा किए गए व्यवहार के संदर्भ में उनसे क्षमायाचना करता है, उन्हें क्षमा प्रदान करता है । जैनदर्शन का प्रसिद्ध शब्द है खमतखामणा। क्षमा लेना और क्षमा देना। यह क्षमा का व्यवहार व्यक्ति को ऋजु और नि:शल्य बना देता है। इतनी सारी प्रक्रिया से गुजरने के बाद व्रत का आरोपण होता है। कायोत्सर्ग : निवृत्ति का प्रयोग समाधिमरण की इस प्रक्रिया के बाद व्यक्ति कायोत्सर्ग में स्थित हो जाता है। वह लम्बा कायोत्सर्ग करता है । जब कायोत्सर्ग किया जाता है तब श्वास स्वत: मंद हो जाता है, शिथिल हो जाता है । जब श्वास शिथिल और मंद हो जाता है तब बाहर से ऑक्सीजन लेने की जरूरत कम हो जाती है। यह माना जाता है—जितनी प्रवृत्ति कम होती है, ऑक्सीजन की खपत उतनी ही कम हो जाती है । कायोत्सर्ग निवृत्ति का प्रयोग है। उस अवस्था में ऑक्सीजन की खपत बहुत कम होती है। आहार का अल्पीकरण, कषाय का अल्पीकरण, अतीत का आलोचन, क्षमापन, व्रत का आरोपण और कायोत्सर्ग-यह समाधिमरण का एक समग्र चक्र है। निष्पत्ति : मूल्यांकन का क्षण आचार्य विनोबा भावे ने कहा था—जैन दर्शन में समाधिमरण की जो व्यवस्थित प्रक्रिया निर्दिष्ट है, वह किसी अन्य दर्शन में प्राप्त नहीं है। जैन दर्शन में समाधिमरण का जो उपक्रम उपलब्ध होता है, वह किसी अवस्था विशेष में किया जाने वाला उपक्रम नहीं है । समाधिमरण का प्रस्तुत प्रयोग प्रतिदिन किया जाने वाला प्रयोग है। कायोत्सर्ग, मौन और कषाय की अल्पता-ये सारे समाधिमरण के प्रयोग हैं । जो व्यक्ति इनका प्रयोग पहले से ही शुरू कर देता है, उसे महावीर का समाधिमरण का दर्शन उपलब्ध हो जाता है। समाधिमरण जीवन की निष्पत्ति है । कार्य से अधिक मूल्यवान् उसकी निष्पत्ति होती है। एक विद्यार्थी नौ महीने तक पढ़ता रहा, उसने खूब परिश्रम किया किन्तु वह परीक्षा में फेल हो गया। परिवारवालों ने कहा-यह निकम्मा है। इसने श्रम किया ही नहीं इसलिए यह परीक्षा में फेल हो गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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