Book Title: Rushabh aur Mahavira
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 96
________________ वर्धमान : निद्रा संयम आश्चर्य हो सकता है। यदि छह महीने भी नींद न आए तो आदमी पागल बन जाता है। बारह वर्ष तक न सोए और प्रभुत्व, प्रसन्नता तथा शक्ति बनी रहे, यह एक विलक्षण बात है। महावीर की साधना का यह एक अद्भुत प्रयोग है। संयम और जागरण का सिद्धांत ___यदि हम निद्रा और अतिनिद्रा के कारणों से बचें तो नीद की संभावना से बचा जा सकता है। सामान्य आदमी न अनिद्रा की स्थिति में जीता है और न अतिनिद्रा की स्थिति में जीता है। वह निद्रा की सामान्य स्थिति में जीता है। निद्रा की सामान्य स्थिति सबके लिए समान नहीं होती। एक आदमी आठ-दस घंटे नींद लेता है फिर भी उसका सिर भारी बना रहता है और एक व्यक्ति दो-तीन घंटे सोकर भी आराम से उठ जाता है, तरोताजा बन जाता है । आहार और नींद में दोनों व्यक्तिगत बातें हैं । आहार और नींद की आवश्यकता को एक तराजू में नहीं तौला जा सकता। यह नहीं कहा जा सकता—इतना सोना चाहिए और इतना नही, इतना खाना चाहिए और इतना नहीं। किंतु अतिभोजन और अतिनिद्रा से अवश्य बचना चाहिए। यह संयम और जागरण का सिद्धांत है। सोने के साथ सोने का विवेक ज़रूरी है। जरूरी है विवेक ____महावीर के जीवन दर्शन से एक महत्वपूर्ण सूत्र फलित होता है—आवश्यक और अनावश्यक का विवेक । यह एक मूल्यवान् सूत्र है, जो समाज के लिए भी उपयोगी लगता है। आवश्यक और अनावश्यक-इसका अर्थ है-अर्थ और अनर्थ का विवेक । जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इस सूत्र को लागू किया जा सकता है। व्यक्ति में यह दृष्टि जाग जाए-मैं अमुक कार्य प्रयोजन के साथ कर रहा हूं और अमुक कार्य निष्षयोजन से कर रहा हूं। इस विवेक का जागरण जीवन की सफलता का बहुत बड़ा सूत्र बनता है। लाला लाजपतराय के पास एक व्यक्ति चंदा लेने गया। प्रसंग ऐसा बना—वे घूमने के लिए जा रहे थे। कोचवान घोड़ा जोत रहा था। साथ में एक नौकर था। लालाजी ने नौकर से कहा-लालटेन भी जला दो । नौकर माचिस की डिब्बी लाया। तिली निकाली। उसे जलाया किन्तु तिली लालटेन जलने से पूर्व ही बुझ गई। तीन-चार बार ऐसा हुआ। लाला लाजपतराय नौकर पर उबल पड़े। चंदा मांगने आया व्यक्ति यह देखकर दंग रह गया। उसकी चंदा मांगने की हिम्मत ही नहीं हुई। लाला लाजपतराय घोड़ी पर चढ़े और आगन्तुक से बोले-आप भी आएं । आप कैसे आए हैं? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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