Book Title: Rushabh aur Mahavira
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 75
________________ ७४ ऋषभ और महावीर शान्तिपूर्ण जीवन का रहस्य ___ सब मानसिक शान्ति चाहते हैं। आज मानसिक तनाव बढ़ रहा है, भावनात्मक तनाव बढ़ रहा है। व्यक्ति चाहता है-तनाव न हो, जीवन शान्तिपूर्ण रहे । उसकी एक आकांक्षा है-शस्त्रों के निर्माण पर रोक लगे। आज शस्त्रों पर रोक लगाने के संदर्भ में कितने आंदोलन चल रहे हैं । दो राष्ट्र-सोवियत रूस और अमेरिका-शस्त्र बनाने में अग्रणी है। ये राष्ट्र शस्त्र विरोध की संधि में अगुआ बनने के लिए लालायित हैं । इसका अर्थ हैं—वे अतीत की ओर लौट रहे हैं, प्रवृत्ति से निवृत्ति की ओर लौट रहे हैं। इसका निष्कर्ष है-निर्वाणवादी जीवन शैली के बिना प्रवृत्ति का जीवन भी अच्छा नहीं चलता। जो व्यक्ति अच्छा जीवन जीना चाहता है, जो समाज या राष्ट्र स्वस्थ और शान्तिपूर्ण जीवन का रहस्य जानना चाहता है, उसे निर्वाणवादी जीवन शैली को अपनाना होगा। समिति और गुप्ति ___ जैन दर्शन में दो शब्द बहुत प्रचलित हैं—गुप्ति और समिति । गुप्ति का अर्थ है निवृत्ति । समिति का अर्थ है प्रवृत्ति किन्तु उनके साथ भी निवृत्ति जुड़ी हुई है। यदि व्यक्ति केवल प्रवृत्ति करता चला जाता है तो वह विचारशून्य बन जाता है, प्रवृत्ति का विवेक खो देता है। आज भी बहुत सारे दार्शनिक चिन्तक और विचारक कहते हैं-निवृत्तिवादी दर्शन ने समाज को अकर्मन्य बना दिया। यह तर्क सही नहीं लगता। यदि गहराई में जाकर देखें तो लगेगा—वे स्वयं निवृत्ति का समर्थन करते चले जा रहे हैं और उसे स्वीकार भी नहीं कर पा रहे हैं। वे अपनी भाषा से स्वयं अनजान बने हए हैं। निवृत्तिवाद का समर्थन करते हए भी उसे नहीं समझ पा रहे हैं। प्रवृत्ति निवृत्ति शून्य न हो हम निर्वाणवादी जीवन शैली को समझें और यह सकंल्प लें-'हम प्रतिदिन आधा घंटा निवृत्ति में बिताएंगे, कायोत्सर्ग में बिताएंगे।' इससे हमें अपनी बहुत सारी समस्याओं का समाधान उपलब्ध होगा। इस प्रयोग से जीवन शैली बदलेगी। आधा घंटा न शरीर की वृत्ति, न मन की प्रवृत्ति और न वाणी की प्रवृत्ति। यह समस्याओं के चक्र को तोड़ने का महत्त्वपूर्ण उपाय है। हम इस बात पर भी ध्यान केन्द्रित करें-हमारी कोई भी प्रवृत्ति, निवृत्ति शून्य न हो । हम प्रत्येक प्रवृत्ति से पहले सोचें-इसके पीछे हमारी निवृत्ति है या नहीं, समय है या नहीं। हम खाते समय सोचे-खाना जरूरी है पर इसके साथ संयम जड़ा हआ है या नहीं? चलते समय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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