Book Title: Rushabh aur Mahavira
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 27
________________ ऋषभ और महावीर उन्होंने अनुभव किया-बहुत ही उचित उपाय मेरे हाथ लग गया है. एक ऐसी दवा मेरे पास है, जो तत्काल अपना प्रभाव दिखाती है, जादू दिखाती है । परन्तु यह जादू भी ज्यादा समय टिक नहीं पाया। धिक्कार नीति ___माकार' नीति का प्रभाव भी काफी समय तक चलता रहा। पांचवें कुलकर के समय में 'मा' ने अपना प्रभाव खो दिया। 'हा' शब्द भी निष्प्रभावी हो गया, 'मा' शब्द भी निष्प्रभावी हो गया। पर आदमी सहजता से अपनी हार नहीं मानता। यदि एक चीज अपना प्रभाव खो देती है तो दूसरी चीज को खोजने का प्रयत्न करता है। व्यक्ति कभी घुटने नहीं टेकता, हार नहीं मानता। इधर प्रकृति अपना काम करती है तो इधर मनुष्य का दिमाग अपना काम करता है । वह रुकता नहीं है, थमता नहीं है, वह निरन्तर आगे बढ़ता चला जाता है। प्रकृति के कितने ही थपेड़े आए, बाधाएं और रुकावटें आएं, वह उन्हें पार करने के उपाय खोज लेता है। हाकार और माकार के निष्प्रभावी होने पर पांचवें कुलकर ने एक नया शब्द खोजा—'धिक्कार' । हाकार, माकार और धिक्कार । जहां सामान्य अपराध होता, वहां 'हाकार' नीति बरती जाती, जहां अपराध थोड़ा गम्भीर होता, वहां माकार नीति और जहां अपराध भयंकर होता, वहां धिक्कार शब्द का प्रयोग होता। इससे अपराध शांत हो जाते । तीनों दण्डनीतियों का स्वरूप यह था १. हाय ! तूने यह किया–हाकार नीति । २. ऐसा आगे कभी मत करना-माकार नीति । ३. धिक्कार है तुझे कि तूने ऐसा किया—धिक्कार नीति । कृत नियम बदलते हैं ___ हम इतिहास को देखें। जैसे-जैसे समय का चक्र आगे खिसकता चला गया वैसे-वैसे समाज का मानस भी बदलता चला गया। बदलते परिवेश में धिक्कार भी अपना प्रभाव खोने लगा यह नहीं हो सकता-जो नियम मैंने आज बनाया, वह शाश्वत बन जाएगा। कोई भी कृत नियम शाश्वत नहीं होता। तर्क-शास्त्र का नियम है-'यद् यद् कृतकं तद् तद् अनित्यम्, यथा-घट:', जो-जो कृत होता है, किया हुआ होता है वह अनित्य होता है, जैसे घड़ा। नित्य वही हो सकता है, जो नैसर्गिक है, प्राकृतिक है। जो अकृत है, किसी के द्वारा बनाया नहीं गया है. और वही शाश्वत हो सकता है। शाश्वत नियम किसी के द्वारा बनाए नहीं जाते। वे नियत होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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