Book Title: Rushabh aur Mahavira
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 37
________________ ऋषभ और महावीर दूध से कोई मतलब नहीं है, वह ऐसी बात सोच सकता है। जिसे आत्मस्थ रहना है उसे गाय के खूटे से बांधने की जरूरत नहीं होती। एक व्यक्ति कहे—मैं गाय का दूध चाहता हूं किन्तु उसे खाना नहीं खिलाऊंगा, पानी नहीं पिलाऊंगा तो क्या कर्म का बन्ध नहीं होगा? विवेक जागे बिना इस मूर्खता को मिटाया नहीं जा सकता। व्यक्ति सारे कार्य करना चाहता है किन्तु जहां कर्तव्य पालन का प्रश्न आता है वहां उसे पाप की चिन्ता सताती है। इसे उसकी सही समझ नहीं माना जा सकता। जरूरी है विवेक ___ आचार्य भिक्षु ने जो दर्शन दिया और आचार्य हेमचन्द्र का जो मंतव्य है, उसमें कोई अन्तर नहीं है। आज इस विवेक का जागना आवश्यक है-कर्त्तव्य अलग होता है और धर्म की आराधना का मार्ग अलग होता है । लोकमान्य तिलक ने गीता रहस्य में इसकी बहुत सुन्दर मीमांसा की है-जब तक लौकिक धर्म और आध्यात्मिक धर्म को अलग-अलग नहीं समझेंगे तब तक समस्या का समाधान नहीं होगा। अभी कुछ दिन पूर्व महावीर वनस्थली का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा-धर्म से राजनीति को अलग रखा जाए। यह आचार्य भिक्षु के दर्शन का फलितार्थ है। आचार्य भिक्षु ने यही कहा था-धर्म अलग है, समाजनीति और राजनीति अलग है। समाज की अपनी आवश्यकताएं और उपयोगिताएं हैं, उनको समाज का व्यक्ति छोड़ नहीं सकता किन्तु जहां धर्मनीति-राजनीति और समाज नीति का मिश्रण होता है वहां हजारों समस्याएं पैदा हो जाती हैं। समस्याओं से मुक्ति इस विवेक से ही सम्भव है-धर्म अलग है, राजनीति और समाजनीति अलग है। तेरापंथ धर्मसंघ में प्रारम्भ से ही छोटे बच्चों को सिखाया जाता है-तीन नीतियां होती हैं-धर्मनीति, राजनीति और समाजनीति । ये तीनों अलग-अलग हैं और इनका अपना-अपना कार्यक्षेत्र है। ऋषभ : राज्य का दायित्व ऋषभ ने समाज के लिए जो कुछ किया, वह अपने कर्तव्य की पूर्ति के लिए किया। वे राजा थे। राजा का अपना दायित्व होता है, अपना कर्त्तव्य होता है। उसे अपने कर्तव्य और दायित्व का निर्वाह करना ही होता है। ऋषभ संन्यासी नहीं बने थे। जो राजसिंहासन पर बैठा है, जिसने राज्य का दायित्व ओढ़ा है, उसे प्रजाहित की बात सोचनी ही पड़ती है। ऋषभ ने भी वैसा ही किया। उन्होंने प्रजाहित के लिए सुन्दर मार्गदर्शन दिया। वे प्रजाहित में कार्य करते चले गए। राजा का अपना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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