Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 196
________________ १८७ चउरासीइमो संधि ४ [९] तहिं अवसरे परिवद्धिय-गउरव तूरइं हयइं पणच्चिय कउरव ल्हसिउ वहरि पई जिउ आओहणु पहरु पहरु पभणइ दुजोहणु तो रवि-णंदणेण सर पेसिय णरेण-वि णिरवसेस णीसेसिय | करु करेण अप्फालइ पावणि अज्ज-वि जियइ धणंजय तावणि पहरु पहरु केत्तिउ पडिवालहि हरि विद्दाणउ किण्ण णिहालहि विस-जउ-जलण-जूय-केस-ग्गह वण-विहि-दाहिण-उत्तर-गो-गह दिण्ण ण पंचगाम तं संभरु णं तो आयहो थामहो ओसरु हउं पंडवहं मणोरह पूरमि कण्ण-गयासणि घाएं चूरमि घत्ता एवहि-मि करमि एक्कंतर पेक्खंतहो सव्वहो जणहो। दुजोहण-मउडु मलेप्पिणु देमि रज्जु तव-णंदणहो॥ [१०] जिह हय राह सयंवर-मंडवे चारिउ चित्तभाणु जिह खंडवे जिह जिय तालुयवम्म धणुद्धर जिह विद्दविय सयल जालंधर जिह सियवत्त-जयद्दह-अंतरे चूरिय भूमिपाल वहु संगरे तिह वावरु एवंहिं जे धणंजय मं उपेक्खहि सोमय-सिंजय कइकय-कासिराय-मच्छाहिव अवर-वि कण्ण सराहय पत्थिव हणु हणु महुमाहवेण-वि वुच्चइ अज्जुणु वइरि जियंतु ण मुच्चइ देहावरणु स-देहउ भिंदहि . जाम ण हणइ ताम सिरु छिंदहि हरि उद्देसिएण लहु-हत्थे आसुग-सहसु विसज्जिउ पत्थे - पत्ता रणे चंपापुर-परमेसरुदीसइ सव्व-सरावरिउ । णं असुर-मंति अत्यंतउ दिणयर-किरणेहिं पइसरिउ ॥ ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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